हरा जगत में फैलता, सिमटे केसर रंग
हरा जगत में फैलता, सिमटे केसर रंग
देशभक्त तू भी बदल, अब जीने का ढंग
अब जीने का ढंग, संविधान है ख़तरे में
राष्ट्रवाद-ओ-धर्म, फेंकते सब कचरे में
महावीर कविराय, लगो मत आवभगत में
तुम रहो सावधान, फैलता हरा जगत में
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