हम भी बिहारी और हम भी गमछाधारी …
हम भी बिहारी और हम भी गमछाधारी, अरे सौ पे न सही दस पे तो जरुरे भारी
हम अभी पगलाए नहीं हैं, हम सहिय कह रहे हैं।
अरे गजवे कुछ चल रहा है, बिहारियों को लोग डगरा का बैगन समझ लिए हैं। जिसको जो मन करता है मुंह उठा कर बोल देता है। जैसे बिहारी होना नीचता का बात हो, इस में दूसरे लोगों का जितना गलती है उतना ही हम लोग और हमारे प्रदेश के पिछले कई सालों की सरकार की है।
हम बिहारी होने पर गर्व नहीं करते और वो हमें इस लायक छोड़ना ही नहीं चाहते की हम गर्व कर सकें।
तभी तो एक लेखक जिसकी पहली ही किताब जब मार्केट में आती है तो बेस्ट सेलर किताब हो जाती है।
2016 में युवा लेखक के रूप में हिंदी के लिए साहित्य अकैडमी युवा पुरस्कार पाते हैं । अरे नाम बताना तो रह ही गया, हां तो “नीलोत्पल मृणाल”
नीलोत्पल को यह पुरस्कार उनके उपन्यास ‘डार्क हॉर्स’ के लिए दिया गया था।
यही जब दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस के एक होटल में खाना खाने जाते हैं तो उन्हें गेट पर ही रोका जाता है, कारण उन्होंने अपने सर पे ठेठ बिहारी स्टाईल में गमछा लपेट रखा था । मैनेजर तक बाहर आ गया था रोकने के लिए, बड़ी हुज्जत के बाद वो खाना खा पाए। कहने का मतलब कि अपने ही देश में हम अपने हिसाब से न रहें ? हमें जैसे रहना हो हम क्यूं न रहें? अपने देशी पने को हम छोड़ दें? काहे भाई बाप ( अंग्रेज) का राज है का ???
और गजब बात तो ई की वो वहां कर क्या रहे थे, मतलब करने का गए थे, कनॉट प्लेस ?
एकदम गजब लगेगा जान के और अचरज भी होगा कि ” मृणाल ” आ कहां से रहे थे, वो संजोग से वहींउसी “कनॉट प्लेस” में बिहारियों के बीच एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए थे। जहां उन्होंने अपने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि “आप दुनिया के किसी भी कोने में जाएं लेकिन अपनी जड़ों से न कटें। यदि आप अपने भाषा, संस्कृति को लेकर सजग नहीं रहेंगे तो वो दिन दूर नहीं जब यह लुप्त के कगार पर पहुंच जाएगा।” जिस पर लोगों ने जम कर तालियां ठोकी ।
अब मेरा कहना है हम क्यूं नहीं दूसरे अन्य राज्य के लोगों जैसे अपनी भाषा, परिधान, अपने दशी पने पर गर्व करते हैं?
चुकी हमें खुद गर्व नहीं अपने बिहारी होने पर, तो लोग भी हमारा मजाक उड़ा लेते हैं। लेकिन मुझे गर्व है अपने बिहारी होने पे, महावीर, बुद्ध, दिनकर और बाबा नागार्जुन” की धरती पे पैदा होने पे। हां मै गर्व से कहती हूं ” मै बिहारी हूं “… जय हो
… सिद्धार्थ