तुम्हारी गली से आने जाने लगे हैं
मेरी पेशानी पे तुम्हारा अक्स देखकर लोग,
मुझे तुम्हारे नाम से पुकारने लगे हैं।
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ख़ुदा जाने ये कैसा हसीन माजरा है,
लोग मेरा नाम तुमसे जोड़ने लगे हैं।
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यों तो एक-एक मिसरा मेरा आम है, ख़ास नहीं,
जाने क्यों हरेक शे‘र में तुम्हारा ज़िक्र देखने लगे हैं।
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एक और अज़ीब बात हुई है तुम्हारी सोहबत में,
लोग इन दिनों मुझे भी, शायर जहीन कहने लगे हैं।
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कुछ चाय पे चर्चा, कुछ इरादा-ए-इश्क़ हो तो बताना,
बेवज़ह हम भी, तुम्हारी गली से आने जाने लगे हैं।