*हम बीते युग के सिक्के (गीत)*
हम बीते युग के सिक्के (गीत)
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हम बीते युग के सिक्के अब कहीं नहीं चलते हैं
1
मर्यादा में बँधे हुए हम दुर्व्यवहार नहीं हैं
कर्फ्यू-दंगा लाने वाले हम त्यौहार नहीं हैं
छला नहीं हमने लोगों को लोग हमें छलते हैं
2
युग बदला पर रिश्वत लेना हमने कभी न चाही
भूख आसुरी-धन-सत्ता की हमने नहीं सराही
खामोशी से सुबह उठे जब शाम हुई ढलते हैं
3
जहाँ प्यार का रंग निखरता हम ऐसे मेले हैं
जहाँ एक बसुधा कुटुम्ब उस आँगन में खेले हैं
नेह भरे सपने मन के भीतर अब भी पलते हैं
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रचयिताः रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451