हम ने तवज्जो नहीं दी
“हम ने तवज्जो नहीं दी”
आज अगर कहीं वाकई कोई कमी हो रही है तो, वो है धीरज सबर संतोष इतमिनान तसल्ली की
इसलिए नहीं कि ये कभी भी नहीं रहे हमारे पास, वरन इसलिए कि हम ने इन्हें तवज्जो ही नहीं दी
बचपन से पढ़ा है दुश्मन को कमज़ोर ना समझो, गुरुओं ने सिखाया, सावधानी हटी, दुर्घटना घटी
वैद बोले साफ हाथों से नक़ाब पहन दूर से मिलो, हमीं ने किया अनसुना और उन्हें तवज्जो नहीं दी
कश्तियां होती हैं, बहती नदियों में चलने के लिए, बाढ़ से उफनती नदियों में नावें नही चला करतीं
इस समय समय को पकड़ने की कोशिश व्यर्थ है, बहुतों ने समझाया मगर, हमीं ने तवज्जो नहीं दी
आग लगे तब कुआं खोदना ये सब सुनते आए हैं, अच्छे बुरे समय के लिए बचाना है मानते आए हैं
पर जब जमा करने का समय था, हम उड़ाते रहे, दिखाई सब दे रहा था पर हम ने तवज्जो नहीं दी
हम इन्होंने ये नहीं किया वो नहीं किया करते रहे, यह कभी ध्यान नहीं दिया कि हम क्या करते रहे
कमाया हर व्यक्ति ने पैसा, पर हम अमीर ना हुए, आबादी बढ़ती ही रही पर हम ने तवज्जो नही दी
~ नितिन जोधपुरी “छीण”