*हम नाचेंगे*
हम नाचेंगे
नाचेंगे हम आँगन मन के।
कभी न आगे पीछे धन के।।
भले सत्य हो धन का मौसम।
पर संतोषी मन है अनुपम।।
समझा लेंगे अपने मन को।
दुत्कारेंगे लौकिक धन को।।
लौकिकता में नश्वरता है।
मन मन्दिर में मौलिकता है।।
मन की माया य़ह जगती है।
प्रिय लक्ष्मी पावन धरती है।।
जो पूजन करता धरती का।
प्रिय नारायण वह जगती का।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।