“हम तुम
बादलों के परे
वो जो आशियाना है
उसे हम दोनों ने तो पिरोया है
नीले आसमान में
अपने पंख फैलाए
उड़ने वाला सूरज,
अँजुरी में एक नई सुबह लिए
मुस्कराहट बिखरने लगा है
ये जो आशियाना है
यहाँ मैं हूँ …. तुम हो
और हमारे बीच
खिले हुए फूलों की बारात
उनकी महक लेकर
मैं बदल जाऊँगी
एक सफेद कागज में
तुम छू लेना मुझे प्यार से
और फैलने लगेंगे कुछ शब्द
भाव और रस से पूर्ण
शून्यता के ऊपर
जागने वाली हमारी मानसिकता
नृत्य करेगी, तांडव मुद्रा में
यहाँ मैं हूंगीं
तुम होगे
और हमारे बीच में
फैली होगी फूलों की बारात।
पारमिता षड़गीं