हम जिसे प्यार करते हैं उसे शाप नहीं दे सकते
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
हम जिसे प्यार करते हैं उसे श्राप नहीं दे सकते,
ऐसा हम सोच सकते है लेकिन होता इसके उलट ही है ।
लगाव जिससे होता है सबसे ज्यादा ।
गालियां भी उसको ही पड़ती है सबसे ज्यादा ।
तुमने क्या सोच लिया कुछ विपरीत अर्थात
उसको माफी मिल जाएगी – अरे नहीं उसकी तो ,
कुटाई भी सबसे ज्यादा की जाएगी ।
स्वार्थ से जुड़े होते हैं रिश्ते , जहां स्वार्थ टूटा रिश्ता लड़खड़ाया ।
और फिर शुरू होगा द्वेष , भेद , दुर्भाव और लांछन ताना आदि ।
लेकिन इस से पहले एक कोशिश होगी प्यार की ।
और नहीं माना तो बंद होगी , बोलचाल भी ।
मेरा क्या सारी दुनिया का ऐसा ही रिवाज है मानो , न मानो ।
क्यूँ तुम्हारा रिश्ता क्या निस्वार्थ है , टूटे या रहे कोई फर्क नहीं होगा ।
अरे माँ , पिता , भाई , बहन , चचा बुआ , सब देख लिए मैंने ।
तुम भी देख लेना फिर बोलना आकार के मैं सत्य बोला ।
हम जिसे प्यार करते हैं उसे श्राप नहीं दे सकते,
ऐसा हम सोच सकते है लेकिन होता इसके उलट ही है ।
लगाव जिससे होता है सबसे ज्यादा ।
गालियां भी उसको ही पड़ती है सबसे ज्यादा ।
ये मृत्यु लोक है कोई देव लोक नहीं , स्वार्थ तो उनमें भी होता है ।
पर उनका स्वार्थ पता नहीं चलता हम मानव है ना ।
हमको ही दोषी ठहराया जाता है सबसे ज्यादा ।
हम जिसे प्यार करते हैं उसे श्राप नहीं दे सकते,
ऐसा हम सोच सकते है लेकिन होता इसके उलट ही है ।
लगाव जिससे होता है सबसे ज्यादा ।
गालियां भी उसको ही पड़ती है सबसे ज्यादा ।