हम और आप ऐसे यहां मिल रहें हैं,
हम और आप ऐसे यहां मिल रहें हैं,
जैसे बागों में कई गुल खिल रहें हैं।
चल रही है हवा भी धीरे धीरे,
देखो पेड़ कोई हिल रहें हैं।
अब समझ आने लगी है जिंदगी थोड़ी,
कुछ उधड़ रहा है रोज़ तो कुछ रिश्ते सिल रहें हैं।
कब तक बांधोगे किसी को जंजीरों से,
पांव सबके छिल रहें हैं।
जो निभाना चाहते हैं मन से नाते सभी,
सफर उनके ही हरदम बोझिल रहें हैं।