हम अपने मन की किस अवस्था में हैं
हमारा स्थूल शरीर जन्म से मृत्यु तक 5 अवस्थाओं से गुजरता है – (1) बाल्यावस्था (2) किशोरावस्था (3) युवावस्था (4) प्रौढ़ावस्था और (5)वृद्धावस्था । ये पांचो अवस्थाएं शरीर के क्रमिक विकास की अवस्थाएं हैं । लेकिन मनुष्य शरीर , स्थूल शरीर तक ही सीमित नहीं है । इसमें सूक्ष्म शरीर (मन) भी शामिल होता है । सूक्ष्म शरीर मृत्यु को प्राप्त नहीं होता । सूक्ष्म शरीर के विकास का भी एक निर्धारित क्रम है । सूक्ष्म शरीर अर्थात मन की पांच अवस्थाएं हैं – 1 मूढ़ 2 क्षिप्त 3 विक्षिप्त 4 एकाग्र और (5) निरुद्ध । मन की मूढ़ अवस्था वाला व्यक्ति सदैव दूसरों में दोष देखता है और उसे हानि पहुंचाने की कोशिश करता है , भले ही वह उसका कितना ही बड़ा हितैषी क्यों न हो । क्षिप्त अवस्था वाला व्यक्ति चंचल स्वभाव का होता है । उसका मन एक समय में कई विषयों पर सोचता है लेकिन कभी किसी निर्णय पर नहीं पहुंचता । मन की विक्षिप्त अवस्था वाला व्यक्ति बहुत कम समय के लिए किसी एक विषय पर टिकता है । वह हाथ में लिए गये कार्य को बीच में छोड़कर कोई दूसरा कार्य करने लग जाता है । एकाग्र अवस्था , मन की एक श्रेष्ठ अवस्था है । इस अवस्था में मन एक बिंदु या विषय पर केंद्रित होने लगता है । मन की एकाग्र अवस्था साधारण मनुष्य को असाधारण बनाने में उत्प्रेरक का कार्य करती है । मन की निरुद्ध अवस्था मन की सर्वाधिक उन्नत अवस्था है । यही अवस्था मनुष्य को असाधारण बनाती है । निरुद्ध अवस्था को प्राप्त व्यक्ति दूसरे जीव जंतु के मन की बात जानने में समर्थ होता है । मन की निरुद्ध अवस्था को प्राप्त अधिकतर व्यक्ति आत्मलीन रहते हैं । वह अपने मन को विचार शून्य अवस्था में रखने में समर्थ होते हैं । इसे समाधि भी कहते हैं । यहां एक बार पुनः स्पष्ट कर दें कि हमारा मन शरीर की मृत्यु के साथ नहीं मरता । मन किसी शरीर के मृत होने पर दूसरे नए शरीर में हस्तांतरित हो जाता है । यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी कंप्यूटर के बहुत पुराने होने पर उसके हार्डवेयर को फेंक दिया जाता है , लेकिन उसके पहले एक पेन ड्राइव में कम्प्यूटर का सारा डाटा डाउनलोड कर नए कंप्यूटर में अपलोड कर दिया जाता है । इस प्रक्रिया को डाटा ट्रांसफर कहते हैं । एक शरीर से दूसरे शरीर में मन का प्रवेश एक तरह का डाटा ट्रांसफर है । पुराने शरीर में मन जिस अवस्था में होता है नए शरीर में वह उतनी ही बेहतर स्थिति से शुरुआत करता है । अपने मन में प्रवहमान विचारों से हम अपने मन की अवस्था को समझ सकते हैं । यदि हमारे मन में किसी के प्रति अकारण घृणा और तिरस्कार के भाव पैदा हों तो हम अभी तक अपने मन की प्रथम अवस्था में ही हैं।
… शिवकुमार बिलगरामी