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24 Aug 2020 · 1 min read

हम अकेल

कामना पुष्पों की लेकर,
कंटकों के राजपथ पर,
हम अकेले चल रहे हैं।।

कर रहीं हैं राज जग पर,
ओढ़ कर उजले कफन को,
कुछ मरी संवेदनाएं।
फिर रही हैं बाँटती अब,
मान के पत्रक हवा में,
बिक चुकीं आलोचनाएँ,

ढल चुका रवि, शशि न निकला,
घोर तम में “दीप” बनकर,
हम अकेले जल रहे हैं।।

लोग कुछ निकले हैं घर से,
बीनने खुशियों की खुशबू,
मातमी वातावरण में।
कारवाँ बन कर रहेगा,
है उन्हें मालूम मुझको,
भी खबर है अनुकरण में।

देखकर यह दृश्य अद्भुत,
लोग खुश हैं हाथ केवल,
हम अकेले मल रहे हैं।।

वारुणी अभिमान की पी,
भाग्य के मारे अभागे,
स्वप्न सब सोये हुए हैं।
देखकर दाने कबूतर,
अपनी ही बरबादियों के,
जश्न में खोये हुए हैं।।

चेतना को दे रहे स्वर,
इसलिए ही तख्त को भी,
हम अकेले खल रहे हैं।

प्रदीप कुमार “दीप”
सुजातपुर, सम्भल

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 312 Views

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