हमेशा आगे
गीतिका
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करते अपनी लेकिन सबकी, सुनते अवश्य हैं।
ऐसे लोग हमेशा आगे, रहते अवश्य हैं।
अल्प समय के जीवन में भी, सबके मन भाते।
फूल खिला करते हैं लेकिन, झड़ते अवश्य हैं।
मजबूरी में साथ न रहते, प्रिय परदेश गये।
नित्य विरह की अग्निशिखा में, जलते अवश्य हैं।
वर्षा ऋतु आने से पहले, श्याम घटा छाई।
बरस नहीं पाते जो बादल, घिरते अवश्य हैं।
तप्त ग्रीष्म में सूखे रहते, काम नहीं आते।
सावन में बरसाती नाले, बहते अवश्य हैं।
खूब मनाते उत्सव करते, भोजन बरबादी ।
पेट गरीबों के जूठन से, भरते अवश्य हैं।
साथ दिया करता जब साहस, कदम न रुक पाते।
जीवन पथ पर सच्चे साथी, मिलते अवश्य हैं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/०६/२०२४