हमें सुहाता जाड़ा
हमें सुहाता जाड़ा।
ठंड बढ़ी है जबसे , तबसे सबकी शामत आई,
स्वेटर, टोपी, मफलर कंबल पड़ने लगे दिखाई
हाड़ कॅंपाता दॉंत किटकिटा, सता रहा है जाड़ा
दुबके हुए रजाई में बस पढ़ते रहो पहाड़ा।
सूरज को ढक बादल बोले, पड़े रहो चुपचाप,
कोहरा बोला तभी अकड़कर, मैं हूॅं सबका बाप।
विद्यालय भी बंद हो गये, कैसे करें पढ़ाई,
उधर किचन में मम्मी जी की दिन भर चढ़ी कढ़ाई।
तिल के लड्डू, गाजर हलवा, दिन भर बनता रहता,
दिन भर छोटू टीवी खोले गेम खेलता रहता।
गरमागरम चाय मिलती है, ज्यों अदरक का काढ़ा।
भले सताता हो बूढ़ों को हमें सुहाता जाड़ा।।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
T 5 / 1103,
आकाश रेजीडेंसी,
मधुबनी के पीछे,
कांठ रोड, मुरादाबाद।