हमें प्रदान करें आनन्द
हम समृद्धि के याचक कब थे
रचे अकिंचन रहकर छन्द
हमें अमरता नहीं चाहिए
हमें प्रदान करें आनन्द
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हे प्रभु! हम मिट्टी के पुतले
वह्नि उदर में करती वास
जल से निर्मित अपनी काया
पवन हृदय में भरे प्रकाश
आसमान में विचरण करने
की कोशिश हम करें न बन्द
हमें अमरता नहीं चाहिए
हमें प्रदान करें आनन्द
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परमेश्वर! आनन्दकन्द तुम
हम पर लगी तुम्हारी छाप
तुम वामन तुम ही विराट हो
सदा तुम्हारा अमिट प्रताप
तव प्रभाव से नियति नटी का
नर्तन होता कभी न मन्द
हमें अमरता नहीं चाहिए
हमें प्रदान करें आनन्द
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सचर-अचर में विद्यमान तुम
तुमसे ही है सृष्टि समष्टि
तुम्हें जगत का पिता मानकर
तुम पर सदा हमारी दृष्टि
तुमसे नियमित नम्र निवेदन
तुम हो अपनी प्रथम पसन्द
हमें अमरता नहीं चाहिए
हमें प्रदान करें आनन्द ।
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महेश चन्द्र त्रिपाठी