” हमारे लोग …हमारी जमीन “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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हम बड़ी -बड़ी बातें करते हैं ,
अपने विचारों ,
लेखों को ,
लिखकर ,
किताबों की शक्ल में उसे ढाल देते हैं !
दुनियां में कोई बड़ा नहीं
कोई छोटा नहीं ,
रंग -भेद को ,
एक जघन्य अपराध बताते हैं !!
गाँवों की तश्वीर ,
वहां की संस्कृति ,
सभ्यता ,
लोक -गीत ,
सादगी के गुणगान से मन अघाता नहीं है !
यह बातें सारी लेखनी में ,
सिमट कर रह जाती है !
बात जब व्यवहार की हो ,
तब हमारी पोल खुल जाती है !!
धरातल की बातें ,
कुछ और है ,
अपने लोगों से कतराते हैं !
उनकी वेश -भूषा ,
रहन -सहन ,
खान -पान, बातचीत से मुहँ मोड़ लेते हैं !!
डर लगने लगता है
हमारा अतीत ..
तो सामने नहीं आ जायेगा ……?
और कहीं हमारे ,
‘नाटकीय जीवन ‘ को
तहस -नहस तो नहीं कर जायेगा…….. ??
इसी क्रम में ,
हम अपनों से दूर चले जाते हैं !
समाज और अपने लोगों से ,
मिलने से कतराते हैं !!
हमें इन गलतिओं,
का एहसास,
तब होता है !
जब हम सब लोंगों से ,
अलग -थलग पड़ जाते हैं ,
अपने को ‘वीरान मरुस्थल में
स्वाति बूंदों’ के लिए तरसते हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत