” हमारे मित्र पुनः बिछुड़ जायेंगे और हम हाथ मलते रह जायेंगे “
” हमारे मित्र पुनः बिछुड़ जायेंगे और हम हाथ मलते रह जायेंगे ”
( डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “ )
=========================================
हमारी उत्कंठाओं की सीमायें आवाध गति से क्षितिज की ओर बढ़ने लगीं हैं …..जब से हमारे हाथों में इन यंत्रों का नायब तोफा मिल गया है !….. उम्र की परिसीमाओं से ऊपर उठ कर हम अधिक से अधिक लोगों से जुड़ना चाहते हैं ! ……प्रतिद्वंदिता की लहरें चरों दिशाओं में फैलती जा रहीं हैं !…. बच्चे ,….युवा ….और ….बुजुर्ग अपनी -अपनी सैन्य संगठन को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं ! ……कभी – कभी अप्रयाप्त प्रोफाइल सूचना के आभाव में हम संकित होने लगते हैं ….कि कहीं हमें स्वीकार करने के बाद शायद पछताना ना पड़े ?……. फिर भी हम उनके मित्रों की सूची को निहारते हैं ! ….अनेक अन्वेषण के उपरांत हम उन्हें स्वीकार करते हैं !…. हमें यह आभास है कि कुछ ऐसे भी लोग हमारे डिजिटल रंगमंच के सहकर्मी होते हैं जो लोगों से जुड़ना तो पसंद करते हैं ….पर असंवेदनशीलता के लिबास को उतार नहीं पाते ! …..कोई मित्र बनाने के बाद उन्हें प्यार भरा सन्देश ..स्वागत पत्र…अपना उद्गार ..अपना विचार लिखता है ! जबाब में ….. समालोचना ..टिप्पणियाँ ,,,पत्रोत्तर …आभार ..स्नेह …अभिवादन ..धन्यवाद् की बातें तो जाने दें ..लाइक करने की जहमत तक नहीं उठाते ! …पर अपनी अन्य पोस्टों को अपने टाइम लाइन पर पोस्ट करना नहीं भूलते ! …..अभिलाषा तो हमें विश्व विजयी बनने का है !…. अपने अश्वमेघ घोड़े को दसों दिशाओं में भेज देते हैं पर आभास नहीं होता है कि कहीं वीर धनुर्धर “लव -कुश “आपके अश्व को रोक ना लें ! ….हमारी युध्य कौशलता धरी की धरी रह जाएगी और हमसे हमारे मित्र पुनः बिछुड़ जायेंगे और हम हाथ मलते रह जायेंगे !
==========================
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत