हमारे देश में
बारूदी खुशबू फिर से उड़ रही हमारे देश में
एक बार फिर नदी खून की बही हमारे देश में
छत्तीसगढ की धरती ने फिर खूनी ध्वज फहराया है
जीवन की सुंदर काया पर संगीनों का साया है
भारत माँ की आँखों में फिर से आँसू लहराया है
देखा जब अपनों ने अपनों का ही खून बहाया हैं
पता नहीं क्या गलत हुआ क्या सही हमारे देश मे
एक बार फिर नदी खून की बही हमारे देश में
है धिक्कार उसे जो सत्ता पाकर केवल राज करे
भला लाभ क्या उस हकीम का जो न कोई इलाज करे
उजड़ गया सिंदूर चीखकर आज यही आवाज करे
तुम्हीं बताओ देश की जनता कैसे तुम पर नाज करे
सदियों से होता आया है यही हमारे देश में
एक बार फिर नदी खून की बही हमारे देश में
फूलों की बगिया उजाड़ कर के काँटा बोने वालों
आँसू मगरमच्छ का भरकर आँखों में रोने वालों
अपने वीर जवानों को बिन मतलब ही खोने वालों
नींद तुम्हें आती है कैसे मखमल पर सोने वालों
लगता है सरकार कोई भी नहीं हमारे देश में
एक बार फिर नदी खून की बही हमारे देश में