हमारे देश के नेता
व्यंग्य
हमारे देश के नेता
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ऐसा सिर्फ हमारे देश में ही हो सकता है
अपराधी हत्यारे माफिया गुंडे का
महिमा मंडन तक किया जाता है।
धर्म की आड़ लेकर
भाई चारा बिगड़ने की दुहाई दी जाती है,
कोई बेशर्मी से शहीद बताता है
तो कोई एक कदम आगे बढ़कर
भारत रत्न की मांग कर बैठता है
राजनीति की आड़ लेकर वोटबैंक की चाह में
कब कौन क्या बोल देगा, कुछ पता नहीं है
क्योंकि देश में बेशर्म नेताओं की कमी नहीं है।
कोई धमका रहा है
कोई कानून समझा रहा है
कोई धर्म की आड़ लेकर एक धर्म को
न डरने का दंभ भर रहा है
आरोप प्रत्यारोप का दौर
बिना सिर पैर के एक दूसरे पर मढ़ा जा रहा
अपराधी का अपराध नहीं
जाति धर्म की आड़ में महिमा मंडित किया जा रहा है।
जिसे चड्डी पहनना भी अभी नहीं आया
वो भी आने वाले कल के लिए
आज ही धमकाना सीख रहा है
जिसे ककहरा भी नहीं आता वो भी
कानून पुलिस अपराध और अपराधी पर ज्ञान बांट रहा है
विपक्ष के बहुत से नेता भौंक रहे हैं
अपने राज्य की कानून व्यवस्था नहीं देख रहे हैं
लोग कानून अपने हाथ में लेकर माहौल बिगाड़ रहे हैं और सरकार चलाने वाले तमाशा देख रहे हैं
बस उल्टे विवाद पैदा करने वाले आरोप लगा रहे हैं।
पुलिस अभिरक्षा में मौत पर ऐसे विधवा विलाप कर रहे हैं
जैसे इससे पहले ऐसी हत्याएं नहीं हुई हैं।
अपराधी हत्यारे को अपना रहनुमा बताने
और कौम का सिरमौर कहने वालों की तब
घिग्घी क्यों बंध जाती है?
जब उनका कथित रहनुमा ही उन्हें
खून के आंसू रुलाता है,
तब कौम के लंबरदारों के मुंह में
मक्खन क्यों जम जाता है,?
क्या उनका धर्म वो सब करने की उसे छूट देता है
या सिर्फ इसलिए कि उक्त अपराधी का जाति धर्म
बस हमारे जाति धर्म से मेल खाता है
बस इतने भर से वो पाक साफ हो जाता है।
और हम अपनी सुविधा से चिल्लाते हैं
वोटबैंक की खातिर इतना नीचे गिर जाते हैं
कि बेहयाई की हद तक पार कर जाते हैं
और बेशर्मों की तरह विधवा विलाप कर रहे हैं।
अपराधियों के मानवाधिकार की बड़ी चिंता है
आम लोगों या सुरक्षा बलों का भी मानवाधिकार हैं
यह समझने में इनकी नानी क्यों मर जाती हैं?
अपराधी पुलिस पर हमला करे
यह इन्हें स्वीकार क्यों है?
पुलिस अपराधी से अपने बचाव में गोली न चलाये
ये ही तो इनका विचार है,
पुलिस वाले मरते हैं तो इनकी बला से
अपराधी मुठभेड़ में मारा जाय तो
इन्हें जाति धर्म नजर आता है,
धर्म खतरे में नजर आता है
लोकतंत्र गड्ढे में नजर आता है
बड़ा अन्याय हो रहा लगता है।
अपराधियों को पालते पोसते भी
हमारे राजनेता और राजनीतिक दल ही हैं
अपराध की दुनिया में उनके संरक्षक भी हमारे नेता ही हैं
जब अपने पर बात आती है
तब ये नेता,दल ही उनके खिलाफ आवाज भी उठाते हैं
उनके जुर्मों पर चीखते चिल्लाते हैं
अपने को दूध का धुला दिखाने की
दिन रात कोशिश करते, गला फाड़ते हैं
सरकार पर आरोप लगाकर घेरते हैं
कार्यवाही होते ही रोने लगते हैं
फिर झूठे आरोप भी लगाते हैं हैं
जो पालते पोसते दुलार भी करते रहे कल तक
एक दिन वे ही किसी न किसी रूप में
उनके सर्वनाश की पृष्ठभूमि भी तैयार करते हैं,
क्योंकि खुद शिकंजे में फंसने से बहुत डरते हैं,
कई बार वे ही पर्दे के पीछे से
उसका काम तमाम करवा देते हैं
हाथ झाड़कर पाक साफ हो जाते हैं।
हमारे देश के नेताओं की लीला राम जी भी न जानें
क्योंकि वे राजनीति नहीं करते हैं
हमारे सफेदपोश नेता अपना हित ही नहीं
लाभ हानि और वोट बैंक सबसे पहले देखते हैं।
हमारे देश के नेता कुछ अलग मिट्टी के ही बने हैं
अपराधी का महिमा मंडन करने में भी नहीं हिचकते हैं
निरपराध को जेल भिजवाने में भी कहां शरमाते हैं,
अपने हित की खातिर नेताजी कुछ भी कर सकते हैं
बस खुद को ग़लत मानने को तैयार नहीं हो सकते हैं।
इसी विशेष गुण के कारण ही तो
वे राजनीति में सफल मुकाम पा जाते हैं
और हमारा वोट पाकर मौज करते हैं
काला सफेद धन संपत्ति बनाते हैं
और आम जनता को रुलाते हैं
खुद घड़ियाली आंसू बहाते हैं।
जन नेता बनने का नाटक रोज करते हैं,
गरीबों का मसीहा कहलाते हैं
क्योंकि उनके गुर्गे और चाटुकार
यही नारा तो रोज लगाते हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित