Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 4 min read

हमारी सहाय आंटी

सहाय आंटी हमारे पड़ोस में रहती थी।
हम बच्चों के लिए तो वह आंटी क्या बल्कि हमारी दादी और नानी समान ही थी। दिखने में बेहद खूबसूरत और रोबीली। ठसके वाली। सीधे पल्लू की बॉर्डर वाली कॉटन की साड़ी पहनती थी। माथे पर बड़ी लाल बिन्दी लगाती थी। आंखें भी बड़ी बड़ी। बोलती थी तो सबको मोह के बंधन में बांध लेती थी। उनका व्यक्तित्व किसी बंगाली उपन्यास की एक नायिका सा था। एक सुघड़, मिलनसार और सुलझी हुई गृहणी का किरदार वह निभाती थी।
वह जब भी हमारे परिवार से मिलती तो यह बात हमेशा कहती थी कि, ‘यह मिनी ही थी जो अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी और मुझे पड़ोस से निकलता देख मेरी बांह पकड़कर मुझे अपने घर तक खींच लाई थी। उस दिन से ही मेरा तुम्हारे यहां आना जाना शुरू हुआ।’
सहाय आंटी की तरह उनकी बेटियां भी बेहद खूबसूरत थी। बड़ी वाली दीदी की तो शादी हो चुकी थी। उन्हें मैंने शायद ही कभी देखा हो। उनसे छोटी रागिनी दीदी की खूबसूरती के चर्चे तब आम हुआ करते थे। सहाय आंटी के एक बेटे थे जो बैंक में कार्यरत थे। वह आज भी फेसबुक पर मेरे दोस्त हैं।उनकी पत्नी वंदना भी बहुत सुंदर, गुणवान और प्रतिभाशाली थी। सहाय अंकल भी एक स्थानीय डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर थे। वह अपने अध्ययन कक्ष में हमेशा ही किताबों से घिरे रहते थे।
कुल मिलाकर यह एक आदर्श परिवार था जहां जाने से स्नेह और संस्कारों की वर्षा बिना कोई मोल चुकाये मुफ्त में प्राप्त होती थी।
मैं शाम को अक्सर खेलने के लिए सहाय आंटी के घर जाती थी। मेरा हमेशा ही बड़ा आदर सत्कार होता था। ढेर सारी प्यार भरी बातें तो नाश्ते पानी के साथ होती ही थी।
मेरे जाने का एक अन्य और अधिक महत्वपूर्ण कारण था रागिनी दीदी की सुंदरता को निहारना। वह मुझे किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं लगती थी। जब वह अपनी गुलाबी फ्रिल वाली मैक्सी पहनती थी तो पूरी गुलाबी ही नजर आती थी।
सहाय आंटी कहती थी कि, ‘इसे बाहर के लोग भी गुलाबो कहकर ही बुलाते हैं।’
रागिनी दीदी के विवाह की शुभ बेला भी एक रोज आ गई। रागिनी दीदी की शादी में जाने के लिए मैं बड़ी उत्सुक थी। बाजार जाकर शादी में पहनने के लिए एक जोड़ी जीन्स टॉप लाई थी।
शादी वाले स्थल पर सब बारात के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मैंने जो जीन्स पहनी थी, उसकी चेन कहीं बैठने या झुकने से बार बार खुल जाती थी। चेन को लगाते लगाते मैं शादी एन्जॉय नहीं कर पा रही थी।
जिस कमरे में रागिनी दीदी दुल्हन के भेष में सज रही थी, वहां पहुंचकर जैसे तैसे किसी से कहकर चेन में सेफ्टी पिन्स लगवाये तब जाकर कहीं यह चेन की समस्या हल हुई।
बारात पहुंचने पर यह जानने की उत्सुकता थी कि रागिनी दीदी का दूल्हा कैसा होगा। थोड़ी सी निराशा हुई। वह रागिनी दीदी के मुकाबले कहीं नहीं ठहर रहे थे।
रंग सांवला और उसपर आंखों पर मोटे फ्रेम की ऐनक लेकिन बैंक में वह ऊंचे पद पर कार्यरत थे तो जीवन भर सुखी वह रहेंगी इतनी तो गारंटी थी।
एक बार सहाय आंटी के घर कोई दूर के रिश्तेदार आये। उनकी जल्दी ही शादी होने वाली थी। मेरे तो बड़े भैया जैसे थे। शाम हो रही थी। कुछ अंधेरा सा हुआ तो आंटी ने अपनी बहू से आंगन की लाइट जलाने को कहा। इसपर उन्होंने एक भद्दी टिप्पणी करी कि, ‘मिनी जहां बैठी है वहां लाइट जलाने की क्या जरूरत। रोशनी तो खुद ब खुद हो जायेगी।’ सहाय आंटी ने किसी की परवाह न करते हुए उन्हें फौरन आड़े हाथों लिया कि, ‘एक बच्ची को यह बात कहते तुम्हें शर्म आनी चाहिए। आगे से यह न हो।’ आंखें निकालकर उन्होंने कहा। उनके रिश्तेदार की तो जैसे बोलती ही बंद हो गई।
सहाय आंटी और रागिनी दीदी एक बार हमारे पड़ोस में वकील साहब के घर गई। उन्होंने एक बहुत ही खतरनाक कुत्तिया पाली हुई थी। उसका नाम था रानी। दोनों मां बेटी जब उनकी कोठी के गेट पर पहुंची तो उन्हें लगा कि चारों तरफ शांति है। उन्होंने सोचा रानी को शायद कहीं अंदर बांध रखा होगा। वह दबे पांव जैसे ही बरामदे तक पहुंची रानी भौंकती हुई कहीं से निकलआई और दौड़ती हुई उनपर झपटने को थी कि आव देखा न ताव सहाय आंटी बरामदे की एक खिड़की पर डर से बेहाल पसीना पसीना हुई लटक गई।
सहाय आंटी एक बार शाम को हमारे घर आईं और आते ही आंखें घुमाकर मेरी मम्मी से बोली कि, ‘बहुरानी आज तुम्हारे यहां शाम को पार्टी है ना!’ ‘पार्टी!’ मम्मी बोली, ‘नहीं तो।’ ‘नहीं है तो।’ उन्होंने अपनी बात बार बार दोहराई। मैंने पूछा कि, ‘नहीं है पर आपको कैसे लग रहा है? कहीं तो ऐसी कोई तैय्यारी नहीं है।’ वह बोली कि, ‘तुमने फिर इतना सारा पनीर क्यों फाड़ा है?’ ‘पनीर!’ हम सबको थोड़ा सा आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा, ‘कहां देखा पनीर?’ सहाय आंटी बोली, ‘बाहर आंगन में टंगा तो है खूंटी से।’ यह सुनते ही हम सब तो हंसते हंसते लोटपोट हो गये। मैंने कहा, ‘वह पनीर नहीं बल्कि हम बच्चों ने एक सफेद कपड़े में रेत भरी हुई है जिससे हम बॉक्सिंग का अभ्यास करते हैं।’ यह सुनकर वह अगल बगल झांकने लगी।
तो ऐसी थी हमारी सहाय आंटी और उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्से। कितने अच्छे और साफ दिल लोग थे यह सब। काश वह हंसता खेलता समय और खुशनुमा शामें आज के दौर में भी लौट आयें।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

3 Likes · 3 Comments · 719 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Minal Aggarwal
View all
You may also like:
मैं अपने बिस्तर पर
मैं अपने बिस्तर पर
Shweta Soni
मास्टर जी का चमत्कारी डंडा🙏
मास्टर जी का चमत्कारी डंडा🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"रेलगाड़ी सी ज़िन्दगी"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
*श्री रामकथा मंदाकिनी
*श्री रामकथा मंदाकिनी
*प्रणय*
आजादी  भी अनुशासित हो।
आजादी भी अनुशासित हो।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जीवन को पैगाम समझना पड़ता है
जीवन को पैगाम समझना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
4658.*पूर्णिका*
4658.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सियासत
सियासत
हिमांशु Kulshrestha
"बेजुबान का दर्द"
Dr. Kishan tandon kranti
कितना आसान है मां कहलाना,
कितना आसान है मां कहलाना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त
मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त
कवि रमेशराज
गौरैया
गौरैया
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
दोहा पंचक. . . . . दम्भ
दोहा पंचक. . . . . दम्भ
sushil sarna
बहुत हुआ
बहुत हुआ
Mahender Singh
#Motivational quote
#Motivational quote
Jitendra kumar
बढ़ती हुई समझ
बढ़ती हुई समझ
शेखर सिंह
मुट्ठी में आकाश ले, चल सूरज की ओर।
मुट्ठी में आकाश ले, चल सूरज की ओर।
Suryakant Dwivedi
“अग्निपथ आर्मी के अग्निवीर सिपाही ”
“अग्निपथ आर्मी के अग्निवीर सिपाही ”
DrLakshman Jha Parimal
*
*"माँ वसुंधरा"*
Shashi kala vyas
तुमको हक है जिंदगी अपनी जी लो खुशी से
तुमको हक है जिंदगी अपनी जी लो खुशी से
VINOD CHAUHAN
कर्म हमारे ऐसे हो
कर्म हमारे ऐसे हो
Sonam Puneet Dubey
हिन्दी भाषा के शिक्षक / प्राध्यापक जो अपने वर्ग कक्ष में अंग
हिन्दी भाषा के शिक्षक / प्राध्यापक जो अपने वर्ग कक्ष में अंग
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
निराकार परब्रह्म
निराकार परब्रह्म
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
बेशक आजमा रही आज तू मुझको,मेरी तकदीर
बेशक आजमा रही आज तू मुझको,मेरी तकदीर
Vaishaligoel
वैवाहिक चादर!
वैवाहिक चादर!
कविता झा ‘गीत’
*****सूरज न निकला*****
*****सूरज न निकला*****
Kavita Chouhan
वह मुझे दोस्त कहता, और मेरी हर बेबसी पर हँसता रहा ।
वह मुझे दोस्त कहता, और मेरी हर बेबसी पर हँसता रहा ।
TAMANNA BILASPURI
*दानवीर व्यापार-शिरोमणि, भामाशाह प्रणाम है (गीत)*
*दानवीर व्यापार-शिरोमणि, भामाशाह प्रणाम है (गीत)*
Ravi Prakash
श्रमिक  दिवस
श्रमिक दिवस
Satish Srijan
जब तुमने वक्त चाहा हम गवाते चले गये
जब तुमने वक्त चाहा हम गवाते चले गये
Rituraj shivem verma
Loading...