हमारी धर्म संसद?
आज हमारे देश में धर्म संसदो की सभा होती है।पर! हमें सभा में किन ,किन लोगो को बुलाना चाहिए? और किसको न बुलाया जाये!यह प्रशन हमें बुद्धि मान जनों से पूछना चाहिए?आज तक हम धर्म की सही परिभाषा नही गढ़ पाये है?हम आज भी धर्म को लेकर दिग्भ्रमित है! आखिर हमें अपने धर्म की तलाश खुद ही करना चाहिए।आज हम धर्म की परिभाषा दूसरे से पूछते हैं? और इससे भी बड़ी बात है कि,हम उससे पूछ रहे हैं! जिसने कभी भी धर्म ग्रंथों का अध्ययन न किया हो। हमें अपने धर्म की नहीं समस्त मानव समाज के धर्म की परिभाषा तय करना होगी? वर्ना हम धर्म को लेकर युद्ध करते रहेंगे।यह बात क्यों समझ में नही आ रही है?कि हम अपने विचारों से ही धर्म का निर्माण कर रहे हैं। सारे मानव समाज को ही कर्म से जोड़ दें।बस मानव अपने कर्म के रास्ते से चलकर धर्म तक पहुंच जायेगा। लेकिन मानव का मन बहुत चंचल होता है!उसे कोई धर्म नहीं बांध सकता है। इसलिए ही अनेक धर्मों का प्रदुरभाव प्रकट हुआ। हमें विशव पटल पर जाकर धर्म संसद की स्थापना करनी होगी। क्योंकि?हर मानव का धर्म एक ही होना चाहिए।वह किसी भी आडम्बर पर कायम न हो। जैसे सारे मानव समाज की एक ही प्राणवायु एक है।