हमारी खुशियाँ हमारे हाथ
हमारी खुशियाँ, हमारे हाथ
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आज के इस व्यस्तम और भागदौड़ भरी जिंदगी में खुश रह पाना सबसे कठिन काम है।हर इंसान भाग रहा है।आज लोगों के पास खुद के और परिवार तक के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल हो रहा है।
ऐसे में हमें खुश रहने के लिए छोटे छोटे पल चुराने की जरूरत है,छोटी किंतु सकारात्मक बातों,कृत्यों में खुश होने का बहाना ढूँढ़ना होगा।खुद सकारात्मक होते हुए परिवार, बच्चों में सकारात्मकता का माहौल विकसित करने का यत्न करते रहना होगा।मायूसी के दलदल से बाहर रहने का प्रयत्न लगातार करना होगा।क्योंकि हम सबको को पता है कि मायूसी और निराशा हमें सार्थक और सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकते।बल्कि और अधिक निराशा और तनाव बढ़ायेंगे ही। ऐसे में हम खुले मन और खुशियों के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करें तो संभावनाएं बढ़ेंगी ही और हमें अधिक अच्छे परिणाम के अवसर बन सकेंगे।
संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि खुशियाँ बाजार में बिकने वाली चीज नहीं है।खुश रहने की प्रवृति हमें स्वयं में विकसित करनी होगी।अब ये हमारे हाथ में है कि हम कैसे अपने लिए अवसर बनाते हैं और खुद के साथ साथ परिवार समाज, राष्ट्र में खुशियों का माहौल विकसित करने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं।
●सुधीर श्रीवास्तव