हमारा तन
मुक्तक
🦚
*******
छिपा जिसमें हुआ ये मन, लगे वह तन हमारा है ,
समझ अपना इसे हमने सजाया है सँवारा है ,
समय के साथ ही कितने बदलता रूप ये अपने,
नहीं चल पा सकेगा एक दिन ये बिन सहारा है ।
🌹
महेश जैन ‘ज्योति,
मथुरा !
***
🪷🪷🪷
मुक्तक
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छिपा जिसमें हुआ ये मन, लगे वह तन हमारा है ,
समझ अपना इसे हमने सजाया है सँवारा है ,
समय के साथ ही कितने बदलता रूप ये अपने,
नहीं चल पा सकेगा एक दिन ये बिन सहारा है ।
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महेश जैन ‘ज्योति,
मथुरा !
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