हमारी भाषा हमारा गौरव
विश्व हिन्दी दिवस है , शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हो रहा है। यह सब देख सुनकर एक सुखद अनुभूति हो रही है। वर्ष में मात्र दो अवसर ऐसे आते हैं ,जब हम हिन्दी भाषी गौरवान्वित होने का आनंद ले सकते हैं ,१४ सितंबर और १० जनवरी । इसके बाद फिर वही ढाक के तीन पात। आंग्ल भाषा का मोह ऐसा कि हिन्दी कहीं पीछे छूट ही जाती है। हिंदी भाषी भी और हिंदी की सेवा कर रहे इतर जन भी आंग्ल भाषा से मोहित हुए बिना रह नहीं पाते हैं।
हिंदी धीरे – धीरे प्रथम स्थान से विस्थापित हो रही है और इसके उत्तरदायी
हम और हमारी पराधीन मानसिकता ही है । हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दी से हमारा उन्नयन संभव नहीं है ,तभी तो हम निरंतर हिन्दी से दूर होकर आंग्ल भाषा की ओर आकर्षित हो रहे हैं । नित नए आंग्ल भाषी विद्यालयों की स्थापना और हिंदी विद्यालयों की उपेक्षा सर्वत्र देखी जा सकती है। समय समय पर हिंदी का अभिषेक कर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। और कुछ क्षेत्रों में सम्मान समारोह आयोजित कर हिन्दी को विभूषित करने की असफल चेष्टा कर आनंद का अनुभव कर लेते हैं आजकल हर कोई दोहरे चरित्र को जी रहा है । भाषा के साथ भी यही हो रहा है। रोजी-रोटी हिंदी से चल रही है किंतु आंग्ल भाषा का मोह ऐसा कि हिन्दी कहीं कगार पर उपेक्षित कर धर दी जाती है। समय पड़ा तो हिंदी को अपनाओ समय निकल गया तो फिर कर दो किनारे । हिंदी चित्र – पट के सितारों , उनके भाषा कौशल और भाषायी मोह पर दृष्टि डालिए । कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं होगी। जिस भाषा ने मान सम्मान प्रसिद्धि और पैसा दिया उसकी उपेक्षा ऐसे ही अभिनय में दक्ष लोग कर सकते हैं। ऐसे अभिनय में दक्ष जन , चित्र – पट से लेकर खेल , राजनीति , वित्तीय संस्थानों और अन्यान्य मंचों पर सरलता से देखे जा सकते हैं। इसीलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि हम ऐसे सार्थक प्रयास करें कि हिन्दी में बात करने वाले और काम करने वाले अपने आप को गौरवान्वित अनुभव कर सकें। यह हिन्दी और हिन्दी प्रेमियों के लिए बहुत आवश्यक है , इसी से हिंदी अपने गौरव को प्रतिस्थापित कर पायेगी। हिंदी से लगाव रखने समस्त जनों को अशेष शुभकामनाएं ।
अशोक सोनी
भिलाई ।