हमसे पूछ रही गौरैया
हमसे पूछ रही गौरैया
किस घर के
आँगन में आकर
अपने मन की व्यथा सुनाऊँ
हमसे पूछ रही गौरैया!
दिखते नहीं
किसी भी घर में
लगे हुए एक भी पेड़
जहाँ बनाऊँ
घोंसला अपना
नहीं दिखे कोई ऐसा ठौर
छूट गया
अब आना -जाना
कैसे मिलने आऊँ सबसे
हमसे पूछ रही गौरैया!
पहला समय
कितना मनमोहक
दिखती थी चतुर्दिक हरियाली
निर्भय होकर
उड़ते-फिरते थे
बसेरा करती थी खुशहाली
अब तो
डर बैठा मन में
कैसे इसको दूर करूँ
हमसे पूछ रही गौरैया!
मानव ने
अपने लालच में
नदी/नाले/ताल सूखा डाले
अपने घर
तो भरपूर बनाए
जंगल के जंगल मिटा डाले
कहाँ पिएँ
पानी जी भर कर
कहाँ बनाएँ नीड़ अपना
हमसे पूछ रही गौरैया!
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई