हमसफ़र 2
मुक्तक – हमसफऱ
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घटाओं ने कहा मुझसे,
मेरी हमदम है बादल सी।
हवाओं ने कहा मुझसे,
मेरी जानम है चंदन सी।
कभी मत छोड़ना उनको,
किसी मझधार में कोहिनूर।
ओ ज़ब मुस्कान भरती है,
तो लगती है अभिनन्दन सी।
मेरी जीवन की बगिया को,
सदा सँवारती भी हो।
पड़े ज़ब वक़्त विपदा की,
वहाँ ललकारती भी हो।
तुम्हारे बिन नहीं अस्तित्व,
मेरा मैं अधूरा हूँ।
लता हो रूप की तुम ही ,
कभी तुम आरती भी हो।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”