हमलोग
खुद का चेहरा हसीन लगता है।
यूॅ ही मिजाज रंगीन लगता हैं।
अपने में सिमटकर यूँ शरमा गये ।
मन में हंसी उठती हैं।
कैसा हैं यहाँ का प्यार’
जो एक पल से शुरू
आधे पल में खत्म होती है।
काश बोल पाते ताउम्र
रहेगा ये प्यार । – डॉ सीमा कुमारी ,बिहार, भागलपुर, दिनांक 17-6-022की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।