“हमरे घरवा के दीपक बुझा गइल हो”
तोहरे मथवा के बिंदिया छुड़ा गईल हो।
हमरे घरवा के दीपक बुझा गइल हो-२
चार दिन भइल उनके गवना के अइले।
छूटल नाही मेहदी उनके हथवा के पहिले।
सन्देशवा सीमा से अब तो आ गइल हो।
हमरे घरवा के दीपक बुझा गइल हो-२
जात रहने जब उ सीमा के लड़ाई पे।
कहे लौट आइब कर्ज माटी के चुकाई के।
अपने गउवा के नमवा करा गइल हो।
हमरे घरवा के दीपक बुझा गइल हो-२
हर बार महीना के भेजत रहने पैसा।
बाबू के दवाई आवे नेवता के दैजा।
अब तो घरवा के मटिया बिकाय गइल हो।
हमरे घरवा के दीपक बुझा गइल हो-२
शुरू में नेता लोग कहने हई साथ हो।
माई तू बतहिया हमे रहब हरदम पास हो।
उ लोग गउवा के रहिया भुला गइल हो।
हमरे घरवा के दीपक बुझा गइल हो-२
(@लेखक द्वारा सर्वाधिकार सुरक्षित)
लेखक-डॉ मनीष कुमार सिंह
असि0 प्रोफेसर(बी0एड0)
स0ब0पी0जी0 कॉलेज
बदलापुर जौनपुर