हमने सुना था
नवयुग तुम ही लाओगे !
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इन बच्चों के मन में अनगिनत सवाल भरे रहते हैं . जिनका उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट कर पाना अक्सर कठिन होता है.
ऐसा ही एक गीत है ‘हमने सुना था एक है भारत !’
इस गीत में बच्चों के चुभते सवाल ही हमारी उम्मीदें जगाते हैं !
दृश्य 1.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी कुछ स्कूली बच्चों के साथ नज़र आ रहे हैं| बच्चों के चेहरे की चमक और उत्साह भरे माहौल में वे बहुत ही खूबसूरत अंदाज में अपने अलग – अलग कार्यक्रमों जैसे ‘परीक्षा पे चर्चा’, ‘अध्यापक दिवस’, ‘बाल दिवस ‘और ‘राष्ट्रीय पर्व ‘ आदि के तहत बच्चों से मुलाकात कर उनसे ढेर सारी बातें शेयर करते हुए कभी धीर-गंभीर , कभी हंसी-ठिठोली करते बच्चों के साथ चहकते दिख रहे हैं ।
इन तमाम अठखेलियों के बीच ही प्रधानमंत्री जी बच्चों द्वारा देश की मौजूदा शिक्षा-व्यवस्था, परीक्षा-प्रणाली और देशहित संबंधित अनेकों मुद्दों पर उठाए गए सवालों के जवाब भी अपने ही अंदाज़ में देते नज़र आ रहे हैं |
प्रधानमंत्री जी की हाज़िर-जवाबी के केवल बच्चे ही नहीं अपितु सभी देशवासी कायल हैं | प्रधानमंत्री जी बस कहीं दिख जाएं तो उनके साथ सैल्फी लेने की मानो बच्चों में होड़ सी लग जाती है |
ये पूरा दृश्य मुझे एक पुराने गीत की याद दिला रहा है|
हम्म् , याद आया न !
दृश्य 2
एक सुव्यवस्थित और अनुशासित कक्षा
कक्षा के मासूम बच्चे एकाग्रचित होकर पूरी तल्लीनता से अपने शिक्षक की बातें बड़े गौर से सुन रहे हैं और जब उनके शिक्षक द्वारा सिखाई गई एक कविता बच्चों को अपने अनुभव के आधार पर सच्चाई की कसौटी पर खरी उतरती नहीं दिखाई देती तो वे मन में कौतूहल,संशय और थोड़ा आक्रोश लिए अपने शिक्षक से गीत के माध्यम से कुछ असुविधाजनक सवाल करते हैं .
बच्चे सवाल इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें शक है कि आज तक किताबों के ज़रिए जो कुछ भी उन्हें पढ़ाया गया है वह कोई अफ़साना ही था जबकि सच्चाई कुछ और ही है। और अपने हृदय की पीड़ा को बच्चों की नजरों से छिपा कर , शिक्षक मुस्कुराते हुए उनके सवालों के पीछे का कारण समझाने का प्रयास करते हैं।
यह दृश्य 1959 में ,सदाशिव चित्रा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म ‘दीदी’ का है| बच्चों के इन सवालों और अभिनेता सुनील दत्त जी के जवाबों को साहिर लुधियानवी जी द्वारा कलमबद्ध किया गया था, जो अपने प्रगतिशील विचारों के लिए जाने जाते थे और जो इस तरह के ज्वलंत मुद्दों पर गीत लिखते थे|
शिक्षक बने सुनील दत्त जी को स्वर दिया था मखमली आवाज के जादूगर मोहम्मद रफी जी ने और मासूमियत भरे बच्चों की आवाज़ बनी थी शोख और खनकते सुरों की मल्लिका आशा भोंसले जी ने।
जिस दौर में यह फिल्म आई तब हमारा देश नई – नई मिली आजा़दी की खुमारी में डूबा हुआ एक नया आकार ले रहा था लेकिन कहीं न कहीं भीतर से बंटवारे के ज़ख्म से मिली असहनीय पीड़ा से छटपटा भी रहा था।
साथ ही आर्थिक विपणता , बेराज़गारी और तमाम तरह की कठिन चुनौतियां भी मुंह खोले खड़ी थी|
देश पूरी तरह से बिखरा पड़ा था और इसे नए सिरे से समेटना अभी बाकी था|
जैसा कि अक्सर पाया जाता है कि शिक्षक के भय से बच्चे मन में घुमड़ते प्रश्नों को पूछने में हिचकिचाते हैं ठीक इसी तरह ही इस दृश्य में भी बच्चे पहले तो कुछ सकुचाते हैं थोड़ा हिचकिचाते हैं परंतु शिक्षक द्वारा प्रोत्साहन पाकर प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं |
गीत के इस दृश्य में हैरानी इस बात की भी होती है कि केवल एक या दो बच्चों के मन में ही देश को लेकर चिंता नहीं है अपितु पूरी कक्षा के बच्चे एक दूसरे के सुर नें सुर मिलाते हुए तमाम तरह के सवालों से जूझ रहे हैं और देश में मौज़ूदा आर्थिक,सामाजिक और न्यायिक व्यवस्थाओं के प्रति चिंतित दिखाई दे रहे हैं . इन्ही चिंतित और आक्रोशित बच्चों के मासूम सवालों और और देश के भविष्य के प्रति आशावान , एक शिक्षक के जवाबों का सुंदर चित्रण है ये गीत ‘हमने सुना था एक है भारत !’
बच्चे पहला सवाल उठाते हैं कि हमने तो सुना था भारत पूरी दुनिया में सबसे नेक देश माना जाता है |लेकिन हम बच्चे जब अपने आसपास देखते हैं तो पाते हैं कि यहां काफी भिन्नता है|कई अलग-अलग धर्म ,जाति-पाति के लोग रहते हैं और उनकी भाषाएं और विचार भी एक दूसरे से बिल्कुल मेल नहीं खाते और आपके इस एकता वाले पाठ में पढ़ाई गई बातें हमें कहीं देखने को नहीं मिलती| शिक्षक बच्चों के इस प्रश्न पर मन ही मन मुस्कुराते हैं और फिर जवाब देते हैं कि भाषा,धर्म और रीति-रिवाज भिन्न होने का यह मतलब तो नहीं कि आपस में हमें कोई बैर रखनी चाहिए|
जिस प्रकार एक डाली पर न जाने कितने ही रंगो के फूल खिलते हैं परंतु वे सभी फूल उस डाली का हिस्सा हमेशा रहते हैं|मैंने जो एकता का पाठ तुम्हें सिखाया है वह बिल्कुल सच्चा है और उसे हमेशा गांठ बाध रखना| यहां मुझे जाफ़र
मलीहाबादी का एक शेर याद आ रहा है ~
‘दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो !’
फिर बच्चे पूछते हैं कि जब हमारे वेद-पुराणों और कुरान में बिल्कुल एक जैसी बातें लिखी हुई हैं तो फिर उनकी शिक्षाओं पर चलने वाले लोग आपस में खून-खराबा और वैमनस्य क्यों पालते हैं ? क्यों दंगों की आग में देश हरबार जलता है ?
बच्चों के इन तमाम चुभते हुए सवालों के बावजूद शिक्षक सहजता से समझाते हैं कि हमारे देश में सदियों तक विदेशी हुकूमत रही थी और उन्होंने हम पर इस कदर अत्याचार किए कि उनके निशान आज तक हमारे दिलो-दिमाग से नहीं निकल पा रहे| उन्होंने हमें हमेशा धर्म ,जाति-पाति और भाषा के आधार पर बांटे रखा ,हमें कभी एक नहीं होने दिया ताकि हमारी इसी फूट का फायदा उठाकर वो हमपर राज कर सकें|
दुख ये है कि वे तो चले गए लेकिन उनकी वो मानसिकता हमारे दिलो-दिमाग में आज भी इस कदर हावी है कि हम समझ नहीं पा रहे कि अब आपसी वैमन्स्य भुलाकर एक होने का समय आ चुका है |
देखा जाए तो हम केवल ब्रिटिश हुकूमत के चंगुल से आज़ाद हुए हैं , उनकी फूट डालो और राज करो वाली नीति से नहीं| हम उनकी इस नीति की चाल नें फंस कर तब तो जिल्लत भरे जीवन को जी ही रहे थे और आज भी उस जिल्लत को खुद से दूर नहीं कर पा रहे|
हमारे देश में दंगे-फसाद उसी ब्रिटिश मानसिकता की एक सोची समझी चाल थी जो आजादी के 70 सालों बाद भी कुछ लोगों के दिलो-दिमाग में उसी रूप में कायम है|
अब हमें ऐसी मानसिकताएं रखने वाले लोगों को सबक सिखाना होगा|
देखिए ख़ावर एजाज़ ने भी यही बात अपने शेर में किस खूबसूरती से बयां की है ~
‘मिरे सेहन पर खुला आसमान रहे कि मैं
उसे धूप छाँव में बाँटना नहीं चाहता !’
बच्चे अगला प्रश्न पूछते हैं कि हमारे देश में कोई ब्राह्मण है, कोई दलित है , किसी को तो इतनी इज्जत मिलती है और किसी को जिल्लत , अगर सभी एक समान हैं तो ये अंतर किस लिए है ?
इसपर शिक्षक समझाते हैं कि कि हमेशा से ही धन और ज्ञान को ताकत वालों अपनी जागीर समझा है और मेहनत और गुलामी को कमजोरों की तक़दीर समझा है|
लेकिन ऐसी ओछी और नीची सोच रखने वाले जो लोग इन्सानों का ये बंटवारा करते हैं वे अनपढ़ दरिंदों से ज्यादा कुछ नहीं हैं और अगर कोई धर्म हमें आपस में नफ़रत करना सिखाता है तो वह धर्म नहीं है, और हमें ऐसे झूठे धर्म के ठेकेदारों से देश को बचाना होगा| और याद रखो कि जन्म से ही कोई व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं होता | किसी भी व्यक्ति की असली पहचान उसके कर्म से होतीे है|
बच्चों तुम्हें अपने कर्मों पर भरोसा रखकर आगे बढ़ना होगा|
बशीर बद्र जी ने यही बात कितने शानदार तरीके से रखी है~
‘सात संदूक़ों में भर कर दफ़न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत !’
अब बच्चे कहां रुकने वाले थे| सवालों की बौछार थमने का नाम नही लो रही थी |
आगे वे पूछते हैं कि जब एक मजदूर दूसरों के लिए महल खड़ा करता है तो वो खुद फुटपाथ पर सोने को क्यों मजबूर है और दिनभर मेहनत करने के बावजूद भी कुछ लोग दाने-दाने को मोहताज क्यों होते हैं ?
और फिर अब जब देश आजाद हो चुका है तो देश के ये हालात क्यों नही बदलतेे ?
शिक्षक भविष्य के प्रति आशावान होकर जवाब देते हैं कि देश ने सदियों गुलामी की मार झेली है ,ये गरीबी,बेरोज़गारी एक दिन में नहीं खत्म हो पाएगी | इस हालात को बदलने के लिए संयम और धैर्य से काम लेना होगा और ये जो नए भारत की एक धुंधली तस्वीर तुम्हारी आंखों में मुझे दिख रही हैं न ,मुझे विश्वास है कि एक दिन तुम लोग ही नए भारत की इस तस्वीर में रंग भरकर इसे चमकाओगे | और मेरा ये विश्वास इसलिए भी है कि तुम ही इस नए भारत के भाग्यविधाता हो | ‘अनेकता में एकता ही तो शान है इसलिए मेरा देश महान है !’
देखा जाए तो ये गीत अपने आप में एक बहुत ही सार्थक और संजीदा सामाजिक बहस को समेटे हुए है। ये गीत कुछ मौजूदा अव्यवस्थाओं से उत्पन्न होनेवाले दुष्परिणामों की तरफ इशारा करते हुए उसमें सुधार की उम्मीद भी करता है|
वैसे तो यह गीत कई साल पुराना है लेकिन गीत में उठाए गये सवाल आज भी जस के तस हैं।
अब हम वापिस पहले दृश्य में लौटते हैं जहां बिल्कुल इसी तरह की ही एक कक्षा में हमारे प्रधानमंत्री जी भी इन नन्हे भविष्य निर्माताओं के तमाम तरह के अनगिनत ,चुभते सवालों के बावजूद उम्मीदों का दामन थामे बड़े ही आत्मविश्वास और धैर्य के साथ इन नन्हे कर्मयोगियों के प्रयासों पर भरोसा जता रहे हैं|
मैं जब भी कभी अपने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विचारों को सुनती हूं तो बिल्कुल इसी गीत का संदर्भ देखने-सुनने को मिलता रहता है |खासतौर पर जब वे जनता द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में जातिगत ढांचे की परंपरागत मानसिकता को खंडित करते है, जन्म आधारित उच्चता को नकारते है और कर्म की श्रेष्ठता और संभावनाओं को पुन: स्थापित करते पर ज़ोर देते हैं|
और कहीं न कहीं आजादी का स्वप्न देखने वाले नेतृत्वकर्त्ताओं ने भविष्य के जिस भारत की कल्पना की थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी भी अपने कार्यों से उस आने वाले कल की आभासी तस्वीर पेश करते दिखाई पड़ते हैं|
*यदि आप गीत देखेंगे तो पाएंगे कि जवाबों और सवालों के बीच शिक्षक को अपना जवाब अधूरा छोड़कर बीच में कहीं जाना पड़ जाता है , वे लौटकर अपना जवाब पूरा करते हैं | परंतु हम सभी को यह सुनिश्चित कर प्रण लेना होगा कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ये कक्षा निर्रवा्ध रूप से यूंही चलती रहनी चाहिए|
हम उनपर अपने सवालों की यूं ही बौछार करते रहें और वो अपने इसी चिर-परिचित अंदाज में हमारे सभी सवालों के जवाब देकर भारत के इन नन्हे भविष्यदृष्टाओं द्वारा भारत को विश्वगुरू बनाने की राह पर दौड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करते रहें !
जय हिंद ! जय भारत ! धन्यवाद !
@sugyata