“हमने पाई है आजादी प्राणों की आहुति देकर”
हमने पाई है आजादी प्राणों की आहुति देकर
चोट खाए कंटकों से, रक्त से विरक्ति होकर
हमने पाई है आजादी प्राणों की आहुति देकर
नयनों से सपने छुटे, मन के सब आस टूटे
सूलियों पर चढ़कर भी, सुख का आनंद लूटे
सुर्ख़ियों में थे सदा वे
मर कर भी जीते है वे मौत को भी मात देकर
हमने पाई है ————————————–१
रो रहा है प्राण भारत बंट गए दो भाग में
जिस्म थे एक मुल्क छाया, जल रहे दो आग में
नफ़रत का खंडयत्र साधे वे खड़े विभक्त होकर
हमने पाई है —————————————-२
वक्त बदले फिर न जाने क्यों बढ़ी दुस्वारीयां
संस्कृत सौहार्द बदले और बदली रीतियां
चांद, मंगल छू लिए हम वो खड़े बारूद लेकर
हमने पाई है —————————————३
हमने खोये मधुर सपने आंखों इन तारों का
झांसी वाली रानी खोए लौह थी अंगारों का
आजादी हम संग पाये क्यों लड़े कश्मीर लेकर
हमने पाई है ——————————————-४
राकेश चौरसिया