हमदर्द कैसे-कैसे
हमदर्द कैसे कैसे हमको सता रहे हैं
काँटों की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं
मैं भी समझ रहा हूँ मजबूरियों को उनकी
दिल का नहीं है रिश्ता फिर भी निभा रहे हैं
भटका हुआ मुसाफ़िर अब रास्ता न पूछे
कुछ लोग हैं यहाँ जो सबको चला रहे हैं
पलकें चढ़ी ये आँखें जो नींद को तरसतीं
सपने मगर किसी के इनको जगा रहे हैं
मग़रूर आप क्यों हैं, हर बात में नहीं क्यों
अब आप फ़ायदा कुछ बेजा उठा रहे हैं