हमको कहीं भाता नहीं
**** हमको कहीं भाता नही ****
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आप बिन हमको कहीं भाता नहीं,
डोलता मन सांस खुल आता नहीं।
छोड़ कर नग़मे तराने प्रार्थना,
गीत – गजलें भी कभी गाता नहीं।
खोलता मेरा लहू काबू नहीं,
क्रोध सीने में भरा जाता नहीं।
भुखमरी में है मरे अपने बहुत,
शेष खाने को बहुत खाता नही।
छा रहे बादल घटा घन घोर है,
हो रही बारिश मिले छाता नही।
चाँद – तारे हार मनसीरत यहीं,
तोड़ कर कोई कभी लाता नही।
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सुखविंदर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)