हब्स के बढ़ते हीं बारिश की दुआ माँगते हैं
हब्स के बढ़ते हीं बारिश की दुआ माँगते हैं
पेड़ के साये दरख्तों की हवा माँगते हैं,
कितने मतलबपरस्त हैं ये ज़ात आदम के
खुद ज़रूरत न हो तो कुछ भी कहाँ माँगते हैं,
रोज़ मायूसी से हर शाम घर जाने वाले
ज़िंदगी से एक और अच्छी सुबह माँगते हैं,
जिसके सदक़े है ज़िन्दगानी का हर इक लम्हा
उस खुदा से ही नहीं उसकी रज़ा माँगते हैं।