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8 Apr 2024 · 1 min read

हब्स के बढ़ते हीं बारिश की दुआ माँगते हैं

हब्स के बढ़ते हीं बारिश की दुआ माँगते हैं
पेड़ के साये दरख्तों की हवा माँगते हैं,

कितने मतलबपरस्त हैं ये ज़ात आदम के
खुद ज़रूरत न हो तो कुछ भी कहाँ माँगते हैं,

रोज़ मायूसी से हर शाम घर जाने वाले
ज़िंदगी से एक और अच्छी सुबह माँगते हैं,

जिसके सदक़े है ज़िन्दगानी का हर इक लम्हा
उस खुदा से ही नहीं उसकी रज़ा माँगते हैं।

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