‘हनुमान नगर में मौत’
वहाँ जाने के बाद मुझे जीवन के बहुत सारे कठिनाईयों से रूबरू होने का मौका मिला। मैं जा रही थी…जा रही थी…. ना कभी गयी थी और नाहीं कोई अनुभव ही था। काफ़ी एक तरफा इलाका है। मैं बात कर रही हूँ, झारखंड राज्य के बोकारो जिले के सेक्टर – 12,हनुमान नगर इलाके की। काफी बड़ी बस्ती है ये। हम सभी सेवा भाव से ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए वहाँ पहुँचे थे।बतौर हमारी संरक्षिका/शिक्षिका साध्वी मैम दिशानिर्देश दे रही थी,और उसी प्रकार हम अपना कार्य कर रहे थे। मैंने वहाँ घुमा,और उस बस्ती का मुआयना करते हुए कुछ वीडियो भी बनाए, वहाँ के लोगों से प्रतिक्रियाएं लीं कि उनकी समस्या क्या है, वे क्या चाहते हैं,उन्हें किन – किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है,यहाँ की परिस्थिति कैसी है,इन सारी बातों का कुछ न कुछ भान तो मुझे अवश्य हुआ।मैंने देखा एक बड़े ही विशाल पीपल के वृक्ष की ठंडी छाँव में कुछ औरतें बैठीं गप्पे लड़ा रही हैं,कुछ बच्चे भी खेल – कूद कर रहे हैं,कुछ बुज़ुर्गों का जमावड़ा एक अन्य स्थान पर था,मैंने सोचा कि वहाँ जाऊँ और देखूँ कि चल क्या रहा है,पर शायद मेरी हिम्मत ही नहीं हुई और वह सिर्फ इसलिए कि मैं अकेली थी,हालाँकि मेरे साथ वहाँ अपनी सेवा दे रहीं रिंकू नामक बहन थीं अगर मैं ग़लत नहीं हूँ तो,फ़िर भी मैं नहीं गयी। हाँ तो मैं बता रही थी,उस ठंडक भरी छाँव में उन्हें देखकर मुझे तो बड़ा आनंद आया,मैं अपने गाँव की उन स्मृतियों में चली गयी जब हम सभी भरी दोपहरी में भी चोरी – छुपे भागकर पेड़ों पर झूला – झूलने चले जाया करते थे। वह भी क्या दिन थे,बड़ा ही सुनहरा पल होता था। ख़ैर फिलहाल मैं इनकी बात करना चाहूँगी। जब उनसे पूछा कि आप माएँ तो पेड़ों की छाँव में बैठी हैं, बच्चों को धूप में क्यों जाने दिया? उनका कहना था,बच्चे उनकी बात मानते ही नहीं। लीजिए मैंने ये भी समझ लिया,बल्कि हमसे बेहतर और समझ भी कौन सकता है,ये सब तो हम पास करके निकल चुके। ये देखा कि कैसे सीमित बल्कि उससे भी कम संसाधनों में वे अपनी दिनचर्या काट लेते हैं।एक ओर जहाँ मैं इनसे बातें कर रही थी,वहीं दूसरी ओर कुछ दूर हमारे साथी कार्यकर्ता उन्हें खिचड़ी परोस रहे थे।सभी अपनी बातों को रखना चाहती थी, बिना रुके एक दूसरे की बातों में हामी भरते हुए।जब मैंने उन्हें बेहद क़रीब और बिना चेहरे को ढंका देख सवाल किया तो वे कहने लगी कि हमलोग तो एक साथ ही रहते हैं,हमें कुछ भी नहीं हुआ है,हाँ अगर कहीं बाहर जाएंगे, तभी इन बातों का ख़्याल रखेंगें। उनसे ढ़ेर सारी बातें करने के बाद मैं वापस उस स्थान पर गयी,जहाँ खिचड़ी परोसी जा रही थी,वहाँ पर सभी को साबून बाँटा, और थोड़ी जागरूकता
की बातें की।सबसे भयावह स्थिति तो तब बन गयी जब पता चला कि कोई महिला खदान में डूबी जा रही है, ये सुनकर तो हमारे होश ही उड़ गए कि अब ये क्या…सभी आनन – फ़ानन में वहाँ पहुँचे,उन्हें निकालने का अथक प्रयत्न किया गया,किंतु सारे प्रयास विफ़ल रहे,उन्हें बचा पाने में सफलता हाथ न लग सकी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।तब मैम ने जल्दबाजी में वहाँ के उपायुक्त साहब को फ़ोन किया और उन्हें घटना की पूरी सूचना दी।उसके बाद क्या हुआ,ये जानने के लिए मैं वहाँ प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं थी,तब तक मैं घर वापस आ चुकी थी। बाद में जाकर जानकारी प्राप्त हुई कि पुलिस आयी और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।क्षण भर में क्या से क्या हो जाता है, ये कह पाना वाकई बहुत कठिन कार्य है।ईश्वर ने यह बेहद कीमती खज़ाना हमारा शरीर,हमारी आत्मा हमें सौंपा है, तो उसका ख़्याल तो सर्वोपरी है ना। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि वो महिला शराब पीती थी,शायद उसके नशे में धुत उनसे क्या हुआ,ये उन्हें भी पता न चल सका होगा।रोज़ की तरह स्नान करने के लिए खदान गयीं हुईं थी,और न जाने क्या हुआ कि फ़िर वापस न लौट सकीं।