हनी गर्ल बनी ‘यूनिसेफ’ गर्ल
अपने इरादों का इम्तिहान है बाकी, जिंदगी की असली उड़ान है बाकी।
अभी तो मापी है मुट्ठी भर जमीं हमने, आगे तो पूरा असमान है बाकी।।
“आँखों में सपने और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो उस पर सफलता पाया जा सकता है”। दुष्यंत की इस पंक्ति को साबित कर दिया बिहार की छोटी सी बच्ची ‘अनिता कुशवाहा’ ने। ‘अनिता’ का जन्म बिहार में मुजफरपुर जिले के बोचहा गांव में एक ऐसे परिवार में हुआ था जहां एक वक्त की रोटी भी मिलना सौभाग्य की बात होती थी। माता-पिता जो भी मेहनत-मजदूरी करके लाते थे उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण भी नहीं हो पाता था। अनिता के सपने थे कि वह पढ़े-लिखे, परिवार की ऐसी आर्थिक स्थिति में यह संभव नहीं था। माँ भी चाहती थी कि वह घर का काम-काज करे और बकरियां चाराए। अनिता रोज बकरियां चराने के लिए जंगल चली जाती थी। बकरियों को अनिता एक खास जगह पर छोड़ देती और पास के ही एक स्कूल में चली जाती थी। स्कूल के बाहर ही बैठ कर वह बच्चों को पढ़ते हुए देखती और सुनती थी। घर में आकर स्कूल में सुनी हुई बातों को वह दोहराती थी। इस तरह अनिता ने पहाड़े, बारहखड़ी आदि बहुत कुछ सीख लिया था। एक दिन गाँव के पंच ने उसे वहाँ स्कूल के पास देख लिया और उसके पिता को बुलाकर अनिता को स्कूल में भेजने के लिए कहा। उसके पिता अपनी बेटी के पढ़ने की इतनी लगन को देखकर सोंच में पड़ गए और अपनी स्थिति को देखते हुए अनिता को पांचवी कक्षा तक पढ़ने की अनुमति दे दी। अनिता बहुत पढ़ना चाहती थी इसलिए वह खूब मेहनत करती थी। दिनभर बकरी चराती, घर का सभी काम करती और रात को जाग कर चिमनी के उजाले में पढ़ाई करती थी। अब अनिता काम के साथ-साथ और भी अधिक पढ़ने में दिलचस्पी लेने लगी। इसके परिणाम स्वरुप उसने अपने ही कक्षा के और कुछ दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी। ट्यूशन से उसे जो भी पैसे मिलते थे, उसे वह अपने किताबों और पढाई पर खर्च करती थी। पांचवी कक्षा तक पढ़ने के बाद जब उसे लगा की अब इतने पैसों से उसकी आगे की पढ़ाई नहीं हो पाएगी तब उसने पैसे कमाने का नया रास्ता ढूँढने लगी। उसे शीघ्र ही नया रास्ता भी मिल गया। कहते हैं कि दिल में कुछ करने की ठान लो तो रास्ते निकल ही जाते हैं, ‘जहाँ चाह वहाँ राह’। वह रास्ता था मधुमक्खी पालन का। अनिता के गांव में लीची के कई बगान थे। वहाँ हमेशा मधुमक्खी पालन करने वाले लोग आते थे। अनिता वहाँ मधु खाने के लिए कभी-कभी जाया करती थी और उनके कामों में हाथ भी बटा देती थी। इस काम को देखकर उसने कुछ ही दिनों में मधुमक्खी पालने का तरीका सीख लिया था। अनिता ने ट्यूशन के पैसे से मधुमक्खी पालने के दो बक्से और दो रानी मक्खी खरीदकर अपना कारोवार शुरू कर दिया। कुछ ही महीनों में उसने अच्छा मुनाफा कमा लिया। कई बार मधुमक्खियों ने काटा भी, यह देखकर लोग उसकी मजाक उड़ाते थे लेकिन अनिता हिम्मत नहीं हारी। अब सबकुछ सामान्य हो रहा था। अनिता के पिता भी मजदूरी का काम छोड़कर उसके कारोबार में हाथ बटाने लगे। मधुमक्खी पालन का व्यवसाय दिन पर दिन बढ़ने लगा। जिससे घर के आर्थिक हालत में सुधार होने लगा। इसी दौरान अनिता ने प्रथम श्रेणी से दसवीं की परीक्षा पास कर लिया। धीरे-धीरे उसने अपने गाँव के सैकड़ों महिलाओं को मधुमक्खी पालन के लिए जागृत किया जिसके कारण गांव की सैकड़ों महिलाएँ आत्म निर्भर बन चुकी थी। आज उसी गाँव की लडकियाँ, जिनके हाथों में बकरी की डोरी होती थी अब अनिता की सफलता को देखकर स्कूल जाने लगी। मधु के मिठास से अनिता की जिंदगी और भी मीठी होती गई। दर्जनों उपाधियों से नवाजे जाने के बाद ‘हनी गर्ल’ अनिता के जीवन पर यूनेस्को ने फ़िल्म भी बनाई। इस फ़िल्म का प्रस्तुतिकरण शिक्षा मंत्रालय द्वारा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया। उसके संघर्षों की कहानी को किताबों में भी समेटा गया। बैंकॉक में विश्व खाद्य दिवस के मौके पर अनिता को महिला मॉडल किसान की उपाधि से सम्मानित किया गया। ‘गोइंग टू स्कूल’ दिल्ली की अमीना किदवई के साथ अनिता ने ओबामा के देश अमेरिका में भी ‘गर्ल इफेक्ट’ संगठन के कार्यक्रम में शामिल होकर पूरी दुनिया के सामने अपने प्रयोग की चर्चा की, जिसने उसे आत्म निर्भर बनाया। छोटी सी उम्र में ही बड़े संघर्षो ने अनिता को वो मुकाम दिया कि अनिता कॉरपोरेट जगत में भी छा गई। एक छोटे से गांव के पगडंडियों से चली और उसके मेहनत की कहानी और कामयाबी ने उसे हाई-टेक बना दिया। अब अनिता की पहचान बिहार की पहली यूथ आईकॉन के रूप में बनी है। प्रसिद्ध मोबाईल कंपनी यूनीनॉर ने अनिता को अपना रोल मॉडल बनाया था और बिहार में लॉचिंग के दौरान पटना में अनिता से ही दीप प्रज्जवलित करवाकर कंपनी की शुरुआत करवाई थी। कंपनी ने अपना पहला सीम अनिता को ही दिया था। ये अलग बात है कि मोबाईल कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा और 2G स्पेक्ट्रम के आवंटन से सम्बन्धित विवादों में घिरकर वो कम्पनी बंद हो गई थी, जिससे अनिता का कुछ लेना देना नहीं था। मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में महारत हासिल करने वाली अनिता पिछले कुछ दिनों से यूनिसेफ द्वारा दिए गए ‘वेट मशीन’ को लेकर घर-घर जाती है और कुपोषित बच्चों की देखभाल करती है। आज वो माँ नहीं बनी है लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति उसका यह लगाव सही मायने में एक ऊँची उड़ान साबित होगी। आज अनिता स्नातकोत्तर की पढ़ाई भी कर चुकी है। शहद के व्यवसाय से अपने परिवार का भरण-पोषण भी कर रही है। बिहार की इस बेटी पर सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरा देश गर्व करता है।
मेरे हौसलों की उड़ान असमान तक है।
बनानी मुझे अपनी पहचान आसमान तक है।
कैसे थक जाऊँ मैं, हार कर बैठ जाऊँ?
मेरे हौसले की उड़ान आसमान तक है।
जय हिन्द