हथिनी की व्यथा
गर्भवती हथिनी की व्यथा
बेजुबां ही तो थी तुम्हें
इंसान समझ के
तेरे गाँव आ गई
लगी थी भूख की तलाश में
पटाखों से भरा…
अनानास खा गई
उदर अग्नि को शांत करने
चबा लिया फल
निर्दयी इंसान मुख गया जल
कराहती मैं तुम्हें न चोट पहुँचाई
गर्भवती थी बच्चे की भी
जान पर बन आई
बारूद का कहर मेरे बच्चे पर पड़ा
कसूर न कोई इंसा तू हंसता खड़ा
नदी के पानी में खड़ी हो कर
मौत आ गई बड़ी हो कर
दुःख यही की बच्चा न बचा सकी
जानवर थी लीला न रचा सकी
नहीं निकली बाहर….
तू किसी आश के लायक नहीं
ऐ इंसान…. तू विश्वास के लायक नहीं!!
रोहताश वर्मा ” मुसाफ़िर “