हजारों मील चल करके मैं अपना घर पाया।
हजारों मील चल करके मैं अपना घर पाया।
कस्तियां इश्क की डुबोईं तो हमसफर पाया ।।
बेखबर नाचता ही रह गया दुनिया की महफिल में।
होश आया तो मैं तन्हा ही बचा, न कोई घर, न ही हमसफर आया।।
हजारों मील चल करके मैं अपना घर पाया।
कस्तियां इश्क की डुबोईं तो हमसफर पाया ।।
बेखबर नाचता ही रह गया दुनिया की महफिल में।
होश आया तो मैं तन्हा ही बचा, न कोई घर, न ही हमसफर आया।।