हकीकत में जिंदगी.. अभिनय से अलग होती है,
कुछ तो खास है सभी की जिंदगी में,
वरन् कौन अपना कैसे बेगाना कहते,
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चाहत की झलक मृग-मरीची की भांति है,
दूर से सब पूरी पास जाकर देखें सब चौपट,
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महेंद्र तू गुम है,रब वा जग नहीं,
कृत्य तेरे नज़रें उनकी तुझ पर हैं,
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वजूद के झगड़े में सिर्फ वजूद गुम है,
खोज लिया जिसने भी फिर वो ही वो है,
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वर्चस्व की लड़ाई में बस वंचित रहे इसी से,
बसा न पाऐ उतने घर जितने आग के हवाले हुये,
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बहुत लोग मिलेंगे ,
मुँह की तरफ देखते,
मूलभूत चाह की ताक में,
कुछ की चाहत की आश में ,
देने वाला देगा नहीं,
क्योंकि खोखला है इंसानियत के नाम पे,
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महेंद्र