हँसी हम सजाएँ
ग़ज़ल
122 122 122 122
फऊलुन,×4
न हम और अब दिल किसी का जलाएँ
अधर पर सभी के हँसी हम सजाएँ
नहीं भा रहा है जिन्हें यश हमारा
चलो हम उन्हें भी गले से लगाएँ
कभी हाल उनका सुने धैर्य से तो
कभी हम उन्हें हाल अपना सुनाएँ
तड़प भूख से आज जो सो गए हैं
बची घर की रोटी उन्हें हम खिलाएँ
अगर मुझसे मिलकर है होता ज़ुदा ग़म
तो कुछ पल न क्यों उनके संग में बिताएँ
रही टूट जब रूढ़ियां हैं जहां में
नये कुछ ख़यालात मन में तो लाएँ
‘सुधा’ ज़िंदगी सबसे ये कह रही है
पिता-माँ,प्रकृति कर्ज सब का चुकाएँ
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ,”©®
6/1/2023