स्वामी विवेकानन्द
1.
अठरा त्रेसठ में जनम , उनीस दो में अंत ।
भुवनेश्वरि की गोद से , बने ‘नरेंद्र’ सुसन्त ।।
2.
थे आध्यात्मिक दार्शनिक , राष्ट्र जागरण लक्ष्य ।
गुरु रामकृष्ण की कृपा , युवा प्रगति थी रक्ष्य ।।
3.
सन्यासी विवेक भरे , वर्तमान के काल ।
छोड़ा कंचन कामिनी , बना कर्तव्य ढाल ।।
4.
युवकों की नव प्रेरणा , युवा विवेकानन्द ।
निर्भीक व सार्थक बनें , पी जीवन मकरन्द ।।
5.
शक्तिशाली व साहसी , विनम्र बनें युवान ।
पीड़ित जन सह देश का , करें युवा उत्थान ।।
6.
भारत को यदि जानना , पढ़ें विवेकानन्द ।
सकारात्मक नींव धरा , उनका चिंतन छंद ।।
7.
देश कल्याण हो तभी , जन गण ऊर्जावान ।
पढ़ विवेक साहित्य को , ये होता है भान ।।
8.
भूख और अज्ञान से , अगर दुखी हैं लोग ।
शिक्षा,धन अरु ज्ञान का , करें सही उपयोग ।।
9.
सेवा ईश्वर की अगर , करने की हो चाह ।
दरिद्र की सेवा करें , मिल सकती है राह ।।
10.
डेड़ सदी के बाद भी , युवकों के सिरमौर ।
उनके वचनों का कभी , खत्म न होगा दौर ।।
11.
युवा हृदय में हो भरा , सेवा का यदि भाव ।
आनंद सह विवेक का , होता सही उठाव ।।
12.
गुरु रामकृष्ण को मिले , शिष्य विवेकानन्द ।
थी शिकागो धरम सभा ,जन गण हित मकरन्द ।।
13.
विवेक सह आनंद का , हो जाए यदि साथ ।
जीवन के उत्कर्ष से , ऊँचा जग में माथ ।।
14.
रुको नहीं ,जागो,उठो , जब तक लक्ष्य न पाव ।
धर्म वही सदधर्म है , निर्धन हित हों भाव ।।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551