स्वामी जी
एक मुक्तक स्वामी जी को समर्पित
संस्कारों के उलटने से ही तो घनानंद बनते हैं,
विचारों के संवरने से ही तो स्वामी दयानंद बनते हैं,
मिल जाये जब गुरु कोई स्वामी परमहँस के सदृश,
तभी तो शिष्य उनके स्वामी विवेकानंद बनते हैं।
इंजी. संजय श्रीवास्तव “सरल ”
बालाघाट (मध्यप्रदेश)