स्वयं को जाने
” स्वयं को जाने ”
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इस मायावी जगत में मानव का अस्तित्व क्या है ? उसका वास्तविक स्वरूप क्या है ? उसके निर्धारित लक्ष्य ,कर्म और कर्तव्य क्या है ? ये जानना बहुत ही जरूरी है | क्यों कि व्यक्ति जब तक अपने ‘स्व’ को नहीं पहचानता तब तक वह दिशाविहीन होकर एक चक्र की भाँति घूमता रहता है | वह अपने यथार्थ स्वरूप को भूलकर दूसरों को जानने का प्रयास करता है | दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वे दूसरों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को जानने का दंभ भरते हैं और तुच्छ मानसिकता के बल पर उन्हें सदा नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं | अपने आस-पड़ौस में घटित होने वाले कुछ मानवीय क्रियाकलापों को देखकर अपने जहन में बैठा लेते हैं और इंतजार करते हैं कि कब इसे हथियार बनाया जाए , ताकि सामने वाले को नीचा दिखाया जा सके | उसके चरित्र का पोस्टमार्टम करने को सदा आतुर रहते हैं , जैसे कि कोई बहुत बड़े सर्जन हों ! लेकिन यह सब मानव जीवन के लिए जरूरी नहीं है | मानव जीवन तो ईश्वर द्वारा प्रदत्त सबसे अनमोल उपहार है जिसे श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कर्मों एवं सद्गुणों के द्वारा ईश्वर से एकाकार किया जा सकता है , क्यों कि ईश्वर ने अपनी समस्त शक्तियाँ मानव के भीतर ही संग्रहित कर दी हैं | अब ये सोचनीय विषय है , कि हम उन छुपी शक्तियों को ढूँढ़ पाते हैं या नहीं ?
जहाँ तक इन शक्तियों को पाने की बात है ,तो यह सुनिश्चित रूप से तय है कि इन्हें हर व्यक्ति प्राप्त नहीं कर सकता | परन्तु ऐसे व्यक्ति इन शक्तियों से रूबरू होकर इन्हें जान सकते हैं ,प्राप्त कर सकते हैं जो कि मोह, काम, क्रोध, मद, लोभ जैसे कषायों पर विजय प्राप्त कर ‘अनन्तचतुष्ट्य’ को अपनाते हैं | उपनिषदों में भी कहा गया है कि व्यक्ति अपने आप को जानकर आत्मसाक्षात्कार द्वारा न केवल “स्वयं” को पहचान सकता है ,अपितु आत्मसाक्षात्कार के द्वारा मोक्ष प्राप्त करके ईश्वर से एकाकार भी हो जाता है | यह हम पर निर्भर है कि हमें मोक्ष जीवन के रहते हुए प्राप्त करना है या जीवन के बाद ! हम अपने सद्कर्मों के द्वारा अपनी ईश्वरीय शक्ति को पहचानकर मानव जीवन को सार्थक कर सकते हैं | हम अपने मानस को अतिमानस में परिवर्तित करते हुए स्वयं को जान सकते हैं | इसके तीन सबसे बड़े लाभ होंगे —
१. अपने “स्व” को पहचान कर खुद को जान सकते हैं |
२. छिद्रान्वेशी बने हमारे मानस के क्षुद्र विकारों को दूर कर सकते हैं जिससे दूसरों का नकारात्मक दृष्टि से आकलन करना समाप्त होगा तथा अपने व्यक्तित्व को हम महानता के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं |
३. आत्मसाक्षात्कार के द्वारा हम खुद को ,खुद की शक्तियों को और ईश्वर की मूल शक्तियों को पहचानकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं |
अत: मानव के लिए सबसे पहला प्रयास खुद को जानने के लिए होना चाहिए ,जो जरूरी भी है और सार्थक भी है |
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”