स्वप्न लोक के वासी भी जगते- सोते हैं।
स्वप्न लोक के वासी भी जगते- सोते हैं।
काबुल वाले गदहे भी हॅंसते- रोते हैं ।।
थोड़े दिन ही ख्याति किसी दानव की टिकती,
काल-गाल में बड़े – बड़े ससमय खोते हैं।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
स्वप्न लोक के वासी भी जगते- सोते हैं।
काबुल वाले गदहे भी हॅंसते- रोते हैं ।।
थोड़े दिन ही ख्याति किसी दानव की टिकती,
काल-गाल में बड़े – बड़े ससमय खोते हैं।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी