“ स्वप्न मे भेंट भेलीह “ मिथिला माय “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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चिंतन, मनन आ स्मरण जे हम यदा -कदा दिन -प्रति -दिन करैत रहैत छी तकरे प्रतिबिंब मानस पटल पर घूडियात रहैत अछि ! आइ स्वप्न मे साक्षात अप्पन “ मिथिला माय “ क दर्शन भ गेल !
हम प्रणाम केलियनि ! हृदय हुनक द्रवित रहैनि ! आँखि सं नोर झहरैत छलनि ! तथापि हुनक आशीर्वाद हमरा भेटल !
हम पुछलियनि , —
” माय ! की भ गेल ? किया आहाँक आँखि सं नोर झहरैत अछि ? कहू न की भ गेल ?”
वो बजलीह ,—
“ बाउआ ! आहाँ की पूछइत छी ? सब त आहाँ केँ बुझले अछि !”
– मिथिला माय मौनता केँ तोडैत बजलीह ,—–
“ हमर पुत्र लोकनि हमर देखभाल करबा मे असमर्थ छथि ! हमर प्राण हमर मैथिली भाषा ,मिथिला संस्कृति आ यज्ञ परोजन मे समाहित अछि ! जखन एहि पर कुठाराघात होइत अछि त बुझू हमर अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लागि जाइत अछि ! “
हम कहलियनि , —
“ हे माते ! भाषा ,संस्कृति आ रीति -रिवाज त अखनोधरि जीवित अछि ! भाषा क विकास भ रहल अछि ! “
“ अधिकाशतः लोग जे जीविकोपार्जन हेतू शहर गेलाह ओ अपने ,कनियाँ ,बच्चा सब मैथिली भाषा सं विमुख भ गेल छथि ! कनि -मनि जे गाम क संसर्ग मे छथि ओ बजैत छथि अन्यथा हुनको अबुह बुझाइत छनि ! इ संक्रामक व्याधि गामो मे सनिहा गेल अछि ! “
“ हे माते ! शहर मे हिन्दी आ अंग्रेजी क प्रचालन छैक !”
इ गप्प सुनि मिथिला माय उदास भ गेलीह आ कहलनि ,——
“ अप्पन भाषा घर मे बजने सं ओहि भाषा सं प्रेम भ जाइत छैक ! अप्पन भाषाक पाठशाला अप्पन घर आ समाज होइत छैक ! अन्य भाषा स्कूल आ बाहरी परिवेश मे बच्चा सिखैत अछि ! मातृभाषा समाज ,संस्कृति आ रीति -रिवाज के सुदृढ़ बनबैत अछि ! सबसं पेघ गप्प ओ गाम सं जुडल रहत ! “
“ इ गप्प त सरिपहुँ कहलहूँ , माते “ !
पुनः हम अप्पन तर्क दैत देलियनि ,–
“ मैथिली लेखक कथाकार आ रंगकर्मी क योगदान त बद्द छैनि ! क्रांति पुरुख भरल छथि ! विभिन्य मंच ,ग्रुप , कमिटी आहाँक सेवा मे तत्पर छथि ! हमरा लोकनिक मिथिला राज्य सेहो बनि रहल अछि ! मैथिली भाषा मे पढ़ाई- लिखाई प्रारंभ भ गेल !”
“ बत्स ! आहाँ कहि रहल छी सत्य !” मैथिली माय बजलिह ,—-
” हिनका लोकनिक योगदान अपूर्व छनि ! मुदा कनि हिनका लोकनि सँ पुछल जाऊ त अधिकांशतः हिनकर पुत्र ,पुत्री ,पौत्र आ पौत्री क शिक्षा अन्य भाषा मे भ रहल छैनि ! कतेक लोक त मैथिली आ मिथिला सँ कोसों दूर छथि ! विभिन्य मंच ,ग्रुप , कमिटी कखनों कखनों दिग्भ्रमित भ जाइत छथि अन्यथा आइ मिथिलाक्षर क प्रचारक लेल अभियान नहि करय पड़ैत ! “
इ कहि “ माते “ अन्तर्धान भ गेलीह ! नहि कहि हुनकर नोर केँ के पोंछतनि ?
हमर स्वप्न टूटि गेल !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका