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15 May 2023 · 1 min read

स्वदेशी के नाम पर

स्वदेशी के नाम पर कभी
जो बजाया करते थे गाल
आज सत्ता सुख भोगने को
दिनभर मचलते हैं बेहाल
कहां गए उनके नारे और
कहां गायब हुआ वो जोश
अब सत्ता की महक से उनके
सब नेता पड़े हैं कहीं मदहोश
सत्ता में अपने संगियों के आने से
पहले करते रहे राष्ट्रप्रेम की बात
सत्ता का सान्निध्य पाकर कहीं
गुम हो गए उनके दिल के जज्बात
बस जुगाड़़ की खोज में इत ऊत
लोगों को देते रहते त्याग की सीख
खुद के लिए चाहते सजे मंच पर
बस सबके बीच वाली हाट सीट
अब ऐसे में भला कौन करेगा
इन ढोंगियों पर कभी विश्वास
जब उनकी करनी और कथनी
में नहीं मिलता स्वदेशी का प्रकाश
स्वदेशी के नाम पर अब तक देश
में कहीं चले जितने भी अभियान
उनके नेता चोला बदल सजाते रहे
अपने घर और बंगले आलीशान
जनता जज़्बातों में बहकर लुटाती
है ऊर्जा, धन और समय बेहिसाब
देखते ही देखते स्वदेशी के पैरोकार
बन जाते हैं आम समाज के नवाब

Language: Hindi
207 Views
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