स्वतन्त्रता
स्वतन्त्रता का अर्थ शायद सबके लिये
अलग होता है, तो मैं स्वतन्त्रता को लेकर
क्या सोचती हूँ, उसके लिये पंक्तियाँ
लिखी हैं ,भाव है—–
स्वतन्त्रता सामाजिक कुरीतियो एवं सामाजिक अत्याचारो से
कहाँ स्वतन्त्र कर पाई स्वयं को ‘निर्भया’,उन खूनी दरिंदों से
“लक्ष्मी” भी तो जल गई अम्ल से, ऐसे ही अत्याचारी हाथों से
अनेकों अबलाये आज भी यहाँ दहेज की बलि चढ़ती हैं
पुत्र प्राप्ति न होने पर घर से निष्कासित होती हैं ।
ऐसा सपना स्वतन्त्र भारत का बापू ने कभी न देखा था
हाल होगा यहाँ यूँ नारी, क्या ये कभी भी सोचा था
कहें “कामिनी”
स्वतन्त्र भारत की असली तस्वीर तो तभी बन पायेगी
जब हर इक बेटी यहाँ पर बेटा ही कहेलायेगी
कोई निर्भया कभी यहाँ पर यूँ नहीं मारी जायेगी
कोई लक्ष्मी फिर न कभी यहाँ अम्ल हमले का शिकार कहलायेगी
हर सुता जब पुत्री जन्म पर भी समान सम्मान जब पायेगी
कोई भी नारी अब यहाँ अबला नहीं कहलायेगी
ये छवि तब स्वतन्त्र भारत की एक अमिट छाप छोड़ जायेगी
आओ ले संकल्प मिल-जुल कर हम-सब
इन कुरीतियों से हम मुक्त देश को कारायेंगें
तभी तो ‘विश्व मे हम पूर्णतः स्वतंत्र कहलायेंगें
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)