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19 Sep 2024 · 4 min read

*स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व रामपुर रियासत में प्रकाशित उर्

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व रामपुर रियासत में प्रकाशित उर्दू समाचार पत्रों का इतिहास
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रामपुर उर्दू का गढ़ था। यहां उर्दू का बोलबाला रहा। रियासती कामकाज में उर्दू के प्रयोग को प्रमुखता प्रदान की गई। शासकीय गतिविधियों में उर्दू ही अपना डंका बजा रही थी। जनमानस तक सूचनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम उर्दू थी। ऐसे में स्वाभाविक है कि चाहे सरकार के समर्थन में हो अथवा विरोध में; उर्दू के माध्यम से ही समाचार पत्रों की गतिविधियां संपन्न हुईं। रियासत रामपुर में उर्दू समाचार पत्रों को निम्नलिखित शीर्षकों से वर्णित किया जा सकता है:-

1) उर्दू साप्ताहिक ‘दबदब -ए- सिकंदरी’
——————————————-
‘दबदब ए सिकंदरी’ रामपुर का संभवतः सबसे पुराना उर्दू साप्ताहिक कहा जा सकता है । इसका प्रकाशन 1866 ईसवी में मोहम्मद हसन खाँ के द्वारा शुरू किया गया। मोहम्मद हसन खाँ ने 1856 ईसवी में हसनी प्रेस की स्थापना की थी और इसी प्रेस में दबदब-ए- सिकंदरी छपता था । दबदबा ए सिकंदरी 1866 से लेकर 1956 तक अर्थात 90 वर्ष तक प्रकाशित हुआ। इसमें से 80 वर्ष से अधिक का समय रियासत का दौर रहा । इस कालखंड में से 1909 से लेकर 1956 ईस्वी तक दबदब ए सिकंदरी की बागडोर मोहम्मद हसन खाँ के परपोते फजले हसन खाँ साबरी के हाथ में रही।
साप्ताहिक अखबार अपने आप में एक बड़ी चीज होती है । अतः 80 वर्षों से अधिक समय का रियासत काल का इतिहास , उसकी गतिविधियाँ और सब प्रकार के क्रियाकलापों को जानने के लिए उर्दू साप्ताहिक दबदबा-ए- सिकंदरी अपने आप में एक बहुत बड़ा सूचनाओं का स्रोत है ।

जब श्री शौकत अली खाँ ने रामपुर रजा लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित रामपुर का इतिहास पुस्तक लिखी ,तब उसके 40 अध्यायों में मुश्किल से एक-दो अध्यायों को छोड़कर सभी में दबदब ए सिकंदरी का संदर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोग हुआ है और यह उपयोग प्रचुर मात्रा में किया गया है। वास्तव में रियासती इतिहास की दृष्टि से सूचनाओं के स्रोत बहुत कम होते थे और साप्ताहिक अखबार का प्रकाशन ऐसे दुर्लभ स्रोतों में बहुत महत्व रखता है । शौकत अली खाँ ने इसे “धार्मिक साहित्यिक राजनीतिक समाचारों , समालोचनाओं और लेखों “का अखबार बताया है । इसमें विविधता है । इस दृष्टि से इसमें सूचनाओं की प्रमाणिकता भी कही जा सकती है कि यह रियासत के संरक्षण में निकलने वाला साप्ताहिक था । मौहम्मद हसन खाँ की प्रेस हसनी प्रेस में रामपुर के शासक नवाब यूसुफ अली खाँ का काव्य- संग्रह छपा था । इससे प्रेस का दबदबा और दबदबा -ए- सिकंदरी के रियासती शासन से संबंधों का अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा। वास्तव में नवाबी दौर में कोई भी ऐसा अखबार जो सरकार विरोधी हो ,उसके प्रकाशित होने की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

सौलत पब्लिक लाइब्रेरी रामपुर में दबदबा सिकंदरी के अंक मूल रूप से सुरक्षित हैं । मुझे उनके दर्शन करने का सौभाग्य मिला है। समाचार पत्र पर अंग्रेजी में पत्र का नाम लिखा रहता था।

2) उर्दू दैनिक समाचार पत्र ‘नाजिम’

17 जून 1940 को ‘नाजिम’ अखबार निकालना शुरू हुआ। इसके पहले संपादक खालिद हसन खां थे। आप बेबाक टिप्पणियां करके अत्यंत प्रसिद्ध हुए। राजनीतिक सूझबूझ के धनी थे।
25 मार्च 1945 को नाजिम दैनिक का संपादक पद छोड़कर आप रामपुर की राजनीति में सक्रिय हो गए। अंजुमन तामीरे वतन, नेशनल कांफ्रेंस और मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में आपने योगदान दिया। रामपुर स्टेट असेंबली के चुनाव जो कि 1948 में हुए थे, उसमें आप विधायक के रूप में चुनकर गए।
दैनिक नाजिम समाचार पत्र के स्वामी मुहिब्बे अली खान कादरी थे। आप प्रखर बुद्धि संपन्न थे। राजनीति में दिलचस्पी थी। 1933 ईस्वी में अंजुमन मुहाजिरीन आंदोलन के सिलसिले में और उसके बाद अगस्त 1947 में भारत विभाजन के समय की गतिविधियों में आप गिरफ्तार हुए। नाजिम दैनिक आपके देहांत 4 दिसंबर 1984 ई के बाद भी निकलता रहा। आपके पश्चात आपके पुत्र नाजिम अली खान ने अखबार के संपादन का कार्य भार संभाला।

3) पाक्षिक उर्दू पत्र “हमदर्द” और “लैस”

पंद्रह दिन के अंतराल में अर्थात पाक्षिक पत्रों के रूप में उर्दू के ‘हमदर्द’ और ‘लैस’ का नाम भी महत्वपूर्ण है। इसके प्रकाशक और संपादक सैयद हादी हुसैन सुकून थे। ‘सुकून’ आपका उपनाम था। काव्य का गुण आप में विद्यमान था।
आप रियासती हुकूमत के खिलाफ खबरों के प्रकाशन से घबराते नहीं थे। इसी सिलसिले में 1940 ईस्वी में तीन साल का कारावास हुआ।
हमदर्द और लैस अखबारों के प्रकाशन स्थल तथा प्रकाशन वर्ष का का स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं हो रहा है। लेकिन अखबार की गतिविधियों के केंद्र में रामपुर अवश्य था। अखबार रियासती दौर में सक्रिय था, यह 1940 ईस्वी में तीन वर्ष की सजा से स्वत: स्पष्ट हो रहा है।
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नोट : प्रसिद्ध इतिहासकार शौकत अली खान एडवोकेट ने ‘रामपुर का इतिहास’ पुस्तक में अलग से एक परिशिष्ट के माध्यम से रियासत कालीन उर्दू पत्रकारिता पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। आप हिंदी और अंग्रेजी के साथ-साथ उर्दू भाषा के मर्मज्ञ थे। अतः आपके अध्ययन में प्रमाणिकता है। उसी के आधार पर यह छोटा-सा लेख तैयार किया गया है।
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लेखक ःरवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451

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