स्वतंत्रता के स्वर्ण विहान हिन्दुस्थान
गीत,अगीत,अनुगीत के विधान तुम ,
कविता की शब्द-चारूत्ता के शोभा-धाम हो ,
भूधर-विपिन-लतादिक,भूति-भावित ,
स्मरण बारंबार , दिव्य-शक्ति कीर्तिमान हो ,
उपमा के , उपमान के प्रकटित नव्य विधान ,
राष्ट्रदूत वीर-व्रती धीर तू महान हो ;
शत्रुहंता , निजधरती की अस्मिता के रक्षक,
स्वतंत्रता के स्वर्ण विहान हिन्दुस्थान हो !
मातृभूमि के प्रहरी जागे तू स्वदेश हित,
करने स्वतंत्र उन्हें जो बन्धनों में बन्ध थे |
उखाड़ने,करने विद्रुप दासता के बेड़ियों को ,
नहीं कहीं उचित कुछ और अनुबन्ध थे |
आये बन नायक उदात्त कवि-कल्पना के ,
या किसी अन्य सुन्दर काव्य-धारा के प्रबन्ध थे !
करने को क्रान्ति , आतंक और जिहाद मिटाने,
वीर-धीर तुम ही तो केवल स्वर्ण-मलय सी सुगन्ध थे !
अखंड भारत अमर रहे !
©
कवि आलोक पाण्डेय