स्वच्छ मन
मन के बंधन खोलिये, जगत लीजिये जीत I
नहीं किसी से बैर हो, रखिये सबसे प्रीत II
रखिये सबसे प्रीत, जगत सुंदर बन जाए I
प्रेम का पुष्प खिले, नफरत मन नहीं भाये II
कहें विजय कविराय, ज्यों ज्यों धोवें रोज तन I
नित मन भी धोइये, तो स्वच्छ रहेगा मन II