स्याह रात में
चंचल किरणें चारु चन्द्र की
मदमस्त करें हर स्याह रात को
प्रिय के हिय में हैं अलख जगातीं
प्रेम लुटातीं हर एक बात में
प्रेम से ओतप्रोत हो जाती
है रातों की अँधियारी सारी
चंचल किरणों के दीदार के खातिर
जगती है दुनिया सारी
एक अरदास है सबकी होती
के प्रिय हो इस रात साथ में
चंचल किरणें चारु चन्द्र की
मदमस्त करें हर स्याह रात को
अंतस के हर ख्वाब जाल में
फंस जाता है हर ख्वाब अधूरा
चारु चंद्र से प्रेरित होकर
कर लें हम इन सबको पूरा
मन अक्सर टोका करता है
खुद से खुद की बात – बात में
चंचल किरणें चारु चन्द्र की
मदमस्त करें हर स्याह रात को
अधूरे ख्वाब अधूरे सपने
जब भी सवाल कर जाते हैं
निशब्द होकर के हम भी
ना जाने क्या – क्या कह जाते हैं
जीवन में सबकुछ है समाहित
क्या रखा जीत में क्या रखा मात में
चंचल किरणें चारु चन्द्र की
मदमस्त करें हर स्याह रात को
-सिद्धार्थ गोरखपुरी