स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में….
स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में ….
दुआ-बद्दुआ जिस-जिस से मिली, फलती रही।
किस्मत भी टेढ़ी-मेढ़ी, चाल अपनी चलती रही।
झुलसता रहा जीवन, संघर्ष-अनल-आवर्त में,
प्रीत-वर्तिका भी मद्धम, बीच हृदय जलती रही।
नेह-प्यासा मन भ्रमित हो, तप्त मरु तक आया,
मरीचिका-सी जिंदगी, भुलावा दे-दे छलती रही।
साँझ ढले घिर आया, तमस अमा का जिंदगी में,
भीगी-भीगी सी शम्आ, बुझती रही जलती रही।
उफ ! कैसा नूर था, उस चन्द्र-वलय से आनन में,
हर शब ही मन में चाँदनी, घुलती-पिघलती रही।
उमड़-घुमड़कर मेघ गम के, पलकों पर आ ठहरे।
नयन बने टकसाल, पीर अश्रु बन ढलती रही।
यूँ ही जगते रात बीती, नींद कहाँ और चैन कहाँ ?
स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में, चित्रपटी चलती रही।
तामझाम सब समेट जग से, बैठी ‘सीमा’ राह में,
मौत दर तक आते-आते, जाने क्यों टलती रही।
©-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
‘मृगतृषा’ से